इंदौर के केंद्रीय जेल में पहली बार आयोजित इमोशनल इंटेलिजेंस सेशन ने कैदियों के बीच एक नया अध्याय शुरू किया। इस सेशन का नेतृत्व रिलेशनशिप कोच और इमोशनल इंटेलिजेंस एक्सपर्ट विकास चौधरी ने किया, जिसमें कैदियों को अपने जीवन में सुधार और सकारात्मक परिवर्तन लाने की दिशा में मार्गदर्शन दिया गया। इस दौरान कैदियों ने खुलकर अपनी भावनाओं और अपराधों के बारे में बात की, और बताया कि कैसे भावनाओं में बहकर उन्होंने गलतियां कीं, जिनका अब उन्हें पछतावा हो रहा है।
केंद्रीय जेल में गुरुवार को आयोजित इस सेशन का उद्देश्य कैदियों की भावनात्मक और मानसिक स्थिति को बेहतर करना था। जेल अधीक्षक अलका सोनकर ने बताया कि इस तरह के सेशन कैदियों को उनकी सजा के बाद समाज में पुनः समाहित होने में मदद कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि इमोशनल इंटेलिजेंस एक महत्वपूर्ण कौशल है, जो कैदियों को न केवल अपनी भावनाओं को समझने में मदद करता है, बल्कि उन्हें सही दिशा में आगे बढ़ने का भी मार्ग दिखाता है।
विकास चौधरी ने कैदियों को इमोशनल इंटेलिजेंस के विभिन्न पहलुओं जैसे आत्म-जागरूकता, आत्म-नियंत्रण, सहानुभूति और सामाजिक कौशल के महत्व के बारे में बताया। उन्होंने समझाया कि इमोशनल मैच्योरिटी का मतलब सिर्फ भावनाओं को काबू में करना नहीं है, बल्कि उन्हें समझना, उनसे सीखना और बेहतर निर्णय लेना है।
कैदियों ने भी इस सेशन को सराहा और अपनी भावनाओं को खुलकर साझा किया। उन्होंने स्वीकार किया कि अगर उन्होंने अपनी भावनाओं को नियंत्रित किया होता, तो वे आज जेल में नहीं होते। अब वे अपने किए पर पछतावा कर रहे हैं और जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने की इच्छा रखते हैं।
विकास चौधरी ने इस बात पर भी जोर दिया कि इमोशनल इंटेलिजेंस की कमी के कारण भारत में हर साल 70 से 80 प्रतिशत अपराध और पारिवारिक विवाद होते हैं। इसलिए, इस कौशल को विकसित करना समाज में अपराधों को कम करने और बेहतर जीवन जीने के लिए आवश्यक है।
केंद्रीय जेल में आयोजित इस इमोशनल इंटेलिजेंस सेशन ने कैदियों को आत्म-मंथन का अवसर दिया, जिससे वे अपने भविष्य को एक नई दिशा में ले जाने के लिए प्रेरित हुए।