मध्यप्रदेश में बाबा महाकाल की ‘शाही सवारी’ को लेकर चल रही बहस ने राजनीतिक और सांस्कृतिक विवाद का रूप ले लिया है। विद्वान भक्तों ने ‘शाही’ शब्द के प्रयोग पर आपत्ति जताते हुए इसे एक इस्लामिक शब्द बताया है और इसे बदलने की मांग की है। इस मांग को लेकर भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता और मंदसोर के पूर्व विधायक यशपाल सिंह सिसौदिया ने भी अपने विचार प्रकट किए हैं। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर पोस्ट करते हुए सुझाव दिया कि ‘शाही सवारी’ के स्थान पर ‘दिव्य और भव्य सवारी’ का प्रयोग किया जाना चाहिए।
इस विवाद के बीच, कांग्रेस ने भी इस मुद्दे पर अपनी प्रतिक्रिया दी है। पार्टी ने ‘शाही सवारी’ के नाम में बदलाव का विरोध करते हुए इसे पारंपरिक और ऐतिहासिक महत्व का हिस्सा बताया है। कांग्रेस नेताओं का मानना है कि इस प्रकार के बदलाव धार्मिक और सांस्कृतिक भावनाओं को ठेस पहुंचा सकते हैं।
बाबा महाकाल की सवारी का इतिहास अत्यंत रोचक और महत्वपूर्ण है। उज्जैन के प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर मंदिर से हर साल सावन और भादौ के सोमवार को बाबा महाकाल नगर भ्रमण पर निकलते हैं। भादौ के दूसरे सोमवार को ‘शाही सवारी’ के रूप में उनकी अंतिम यात्रा आयोजित होती है। इस भव्य यात्रा में चांदी के रथ पर सवार होकर बाबा महाकाल पूरे शहर का भ्रमण करते हैं, जिसमें विभिन्न कलाकार, संगीतकार, और नर्तक शामिल होते हैं। इस यात्रा को देखने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु उमड़ते हैं, और पूरा नगर भगवान महाकाल के जयकारों से गूंज उठता है।
महाकाल की सवारी की परंपरा करीब 1100 साल पुरानी है, जिसका आरंभ 11वीं शताब्दी में राजा भोज ने किया था। इस यात्रा में मुगल सम्राट अकबर और जहांगीर भी शामिल हुए थे। बाद में सिंधिया वंश के राजाओं ने इसे और भी भव्य बना दिया।
इस सवारी को लेकर चल रही बहस ने धार्मिक और सांस्कृतिक संदर्भों को उजागर किया है। ‘शाही’ शब्द के प्रयोग को लेकर उठी आपत्तियों के बावजूद, बाबा महाकाल की सवारी अपनी प्राचीनता और परंपरा के साथ जारी रहेगी, जिसमें श्रद्धालुओं की आस्था और उत्साह का केंद्र बना रहेगा।