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“मैं क्यों दूं पंजाब को पानी?” — उमर अब्दुल्ला का सिंधु जल विवाद पर तीखा बयान

श्रीनगर/नई दिल्ली।
जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने सिंधु नदी जल बंटवारे को लेकर केंद्र सरकार की योजना का कड़ा विरोध करते हुए पंजाब और अन्य राज्यों को पानी देने से इनकार कर दिया है। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि,

“मैं क्यों दूं पंजाब को पानी? क्या उन्होंने हमें कभी दिया?”

यह बयान उस समय आया है जब केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर की सिंधु प्रणाली की पश्चिमी सहायक नदियों से पंजाब, हरियाणा और राजस्थान को पानी पहुंचाने की योजना पर कार्य कर रही है।


🔍 पृष्ठभूमि: क्या है विवाद?

पानी को लेकर यह विवाद नया नहीं है। इसका सीधा संबंध पठानकोट स्थित शाहपुर कांडी बैराज परियोजना से है, जो रावी नदी पर स्थित है। इसका उद्देश्य भारत के हिस्से के जल को पाकिस्तान में बहने से रोकना था।

1979 में पंजाब और जम्मू-कश्मीर के बीच एक समझौता हुआ था, लेकिन दशकों तक यह परियोजना राजनीतिक मतभेदों और राज्यों के बीच विवादों में उलझी रही। 2018 में केंद्र सरकार की मध्यस्थता के बाद काम दोबारा शुरू हुआ।


🗣️ उमर अब्दुल्ला ने क्या कहा?

उमर अब्दुल्ला ने पत्रकारों से बातचीत में कहा:

“हमारे पास थोड़ी मात्रा में पानी है और वह भी हम अपने लिए रखेंगे। पंजाब ने हमें कभी पानी नहीं दिया, जब हमें ज़रूरत थी। अब जब हमारे पास थोड़ा संसाधन है, तो क्यों दें?”

उन्होंने आगे कहा:

“113 किलोमीटर लंबी प्रस्तावित नहर का पानी इस वक्त सिर्फ जम्मू-कश्मीर के लिए है। हम पहले अपनी ज़रूरतें देखेंगे, बाद में कोई फैसला लेंगे।”


🗯️ अकाली दल का पलटवार

शिरोमणि अकाली दल के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री डॉ. दलजीत सिंह चीमा ने उमर अब्दुल्ला के बयान पर तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा:

“जब भी देश में जल बंटवारे की बात होती है, सबसे ज्यादा नुकसान पंजाब को उठाना पड़ा है।”

चीमा ने कहा कि उमर को अन्य राज्यों की ज़रूरतों और राष्ट्रीय संसाधनों के साझा उपयोग की भावना से सोचने की सलाह दी। उन्होंने केंद्र सरकार से भी अपील की कि वह जल वितरण पर संतुलित और स्थायी नीति अपनाए।


🧭 क्या है आगे का रास्ता?

यह विवाद केवल राज्यीय हितों तक सीमित नहीं, बल्कि यह अंतर्राज्यीय जल वितरण और राष्ट्रीय नीति से भी जुड़ा हुआ है। ऐसे में विशेषज्ञों का मानना है कि:

  • सभी संबंधित राज्यों को बैठकर समाधान निकालना चाहिए।

  • केंद्र सरकार को स्पष्ट नीति बनानी होगी ताकि हर राज्य को उचित पानी मिल सके।

  • यह मामला केवल पानी का नहीं, बल्कि संघीय संरचना और संसाधनों की साझेदारी से जुड़ा है।


📌 निष्कर्ष

उमर अब्दुल्ला का बयान जम्मू-कश्मीर की पानी पर स्वायत्तता की मांग को दर्शाता है, वहीं पंजाब की प्रतिक्रिया साझा अधिकार और राष्ट्रीय प्राथमिकताओं की बात करती है। ऐसे में यह ज़रूरी हो गया है कि पानी जैसे संवेदनशील मुद्दे पर राजनीति से ऊपर उठकर विचार किया जाए और सभी पक्षों को संतुलन के साथ सुना जाए।

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