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सप्तऋषियों ने गुरु दक्षिणा में आदियोगी को क्या दिया

जानें गुरु दक्षिणा की अद्भुत कथा

Guru Purnima 2025: हर साल आषाढ़ की पूर्णिमा पर करोड़ों लोग गुरु पूर्णिमा मनाते हैं। गुरु पूर्णिमा अंधभक्ति का दिन नहीं बल्कि उस गुरु के प्रति गहन कृतज्ञता प्रकट करने का अवसर है, जिन्होंने जीवन को और अधिक स्पष्ट रूप से देखने में मदद की। आज की दुनिया में ‘गुरु दक्षिणा’ का विचार लोगों को कुछ पुराना या भ्रमित करने वाला लगता है। यह न तो दान है और न कोई पुरानी रस्म है, गुरु पूर्णिमा उस आंतरिक परिवर्तन का सम्मान है जो आपने गुरु की कृपा से पाया है। लेकिन, गुरु कौन होता है और क्यों उसकी आवश्यकता होती है ?

Guru Purnima 2025 
Guru Purnima 2025

आखिर कौन होता है गुरु?

गुरु दक्षिणा की बात करने से पहले यह समझना जरूरी है कि गुरु की जरूरत क्यों पड़ती है? जब आप जानी-पहचानी राह पर चलते हैं तो आपके पुराने अनुभव और ज्ञान काम आ सकते हैं। लेकिन, जब बात भीतर की दुनिया यानी विचारों, भावनाओं और आत्म-बोध की होती है तो यह एक अनजाना क्षेत्र है। एक ऐसी दुनिया में जहां ज्यादातर लोग बाहरी सफलता और शोहरत के पीछे भाग रहे हैं, भीतर की ओर मुड़ना अकेलापन और असमंजस पैदा कर सकता है। ऐसे में गुरु उस अंधेरे जंगल में दिशा दिखाने वाले दीपक जैसे होते हैं। गुरु एक ऐसे पथदर्शक हैं, जो खुद उस मार्ग पर चले हैं और अब आपका मार्ग रोशन करेंगे।

गुरु दक्षिणा की कथा

गुरु दक्षिणा की सच्ची भावना को सबसे सुंदर रूप में प्रकट करने वाली कथा आदि योगी और सप्तऋषियों की है। सद्गुरु के अनुसार, जब सात ऋषियों ने आदि योगी (शिव) से योग का गहन ज्ञान प्राप्त कर लिया तो आदि योगी ने उनसे गुरु दक्षिणा मांगी। ऋषि गण स्तब्ध हो गए कि उनके पास ऐसा क्या है जो आदि योगी को दे सकें?

तब अगस्त्य मुनि बोले, ‘मेरे पास 16 रत्न हैं, जो कि सबसे अनमोल हैं। ये 16 रत्न मैंने आपसे ही पाए हैं, अब मैं इन्हें आपको ही अर्पित करता हूं’ ये ’16 रत्न’ कोई भौतिक रत्न नहीं थे। बल्कि, ये रत्न गहरे आत्मबोध और अनुभव थे जो उन्होंने आदि योगी की कृपा से प्राप्त किए थे। इन सात ऋषियों ने इन रत्नों को पाने के लिए 84 वर्षों की कठिन साधना की थी और जब आदि योगी ने गुरु दक्षिणा मांगी तो उन्होंने वे सब एक पल में उनके चरणों में अर्पित कर दिए और स्वयं को रिक्त कर दिया।

Guru Purnima 2025 
Guru Purnima 2025

आदि योगी बोले कि, अब चलो और वे खाली हाथ वहां से चले गए। जब वे रिक्त होकर गए और वे स्वयं शिव जैसे बन गए। तब योग के 112 मार्ग उन सातों ऋषियों के माध्यम से उजागर हुए वे चीजें जिन्हें वे कभी समझ नहीं पाए थे। वे क्षमताएं, जो उनमें नहीं थीं. वे चीजें जिनके लिए उनके पास पर्याप्त बुद्धि नहीं थी। वह दृष्टि जो उनके पास नहीं थी और वह सब उनमें केवल इसलिए समा गई क्योंकि, उन्होंने अपने जीवन का सबसे अमूल्य भाग समर्पित कर दिया था और खुद को पूर्ण रूप से रिक्त कर दिया था।

जैसा कि सद्गुरु कहते हैं, ‘ऐसा नहीं है कि गुरु को दक्षिणा की आवश्यकता है, बल्कि गुरु चाहते हैं कि शिष्य समर्पित होने की भावना के साथ जाए। क्योंकि, अर्पण की अवस्था में मनुष्य अपनी श्रेष्ठ अवस्था में होता है।’ इसलिए, इस गुरु पूर्णिमा पर यह कथा हमें यह स्मरण कराती है कि, गुरु दक्षिणा कोई लेन-देन नहीं है। यह हृदय से की गई एक अर्पण-भावना है क्योंकि, जब कोई व्यक्ति श्रद्धा से न करके कर्तव्य-बोध से कुछ अर्पित करता है। तब वह न केवल कृतज्ञता प्रकट करता है बल्कि गुरु की कृपा के लिए पूरी तरह ग्रहणशील हो जाता है।

Guru Purnima Vrat Katha
Guru Purnima Vrat Katha

वास्तव में गुरु दक्षिणा है क्या?

मूल रूप से, गुरु दक्षिणा कृतज्ञता की एक गहरी अभिव्यक्ति है और यह कोई बाध्यता नहीं है। लेकिन, जब आपको कुछ भीतर गहराई से छूता है, जब आपकी चेतना में एक बदलाव आता है, तब एक स्वाभाविक समर्पण गुरु और उसकी कृपा के प्रति जागता है। यह आपको जो मिला है, उसके प्रति स्वीकृति का प्रतीक है। गुरु दक्षिणा इस बात से नहीं मापी जाती कि, आपने क्या दिया या कितना दिया बल्कि इस बात से मापी जाती है कि आपने वह किस भावना से दिया है।

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