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इंदौर फर्जीवाड़ा मामला: एडीजे विजेंद्र रावत को अग्रिम जमानत, जांच में नया मोड़

इंदौर फर्जीवाड़ा मामला: एडीजे विजेंद्र रावत को अग्रिम जमानत, जांच में नया मोड़

इंदौर: एमजी रोड थाने में दर्ज बहुचर्चित फर्जीवाड़ा प्रकरण में आईएएस संतोष वर्मा और एडीजे विजेंद्र सिंह रावत पर लगे आरोपों की जांच लगातार नए मोड़ ले रही है। शुक्रवार को इंदौर के सत्र न्यायाधीश प्रकाश कसेर ने निलंबित एडीजे विजेंद्र रावत को अग्रिम जमानत दे दी, जिससे इस मामले में नए विवाद और चर्चाओं को जन्म मिल गया है।

मामले का इतिहास और आरोप
दरअसल वर्ष 2021 में लसुड़िया थाने में दर्ज एफआईआर के अनुसार, संतोष वर्मा पर अदालत के दो आदेशों की फर्जी प्रतियां तैयार करने और उनका उपयोग करने का गंभीर आरोप है। इस मामले में तत्कालीन न्यायिक अधिकारी की शिकायत पर उनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 120-बी, 420, 467, 468 और 471 सहित अन्य धाराओं में प्रकरण दर्ज किया गया था। इस मामले में संतोष वर्मा पहले ही जमानत पर हैं।

इंदौर पुलिस की जांच रिपोर्ट में यह तथ्य सामने आया कि पांच और छह अक्टूबर को जिन फर्जी दस्तावेज़ों को तैयार किया गया, उस दौरान संतोष वर्मा और निलंबित एडीजे विजेंद्र रावत की मोबाइल लोकेशन स्थानीय जिला कोर्ट परिसर और शहर की रेजीडेंसी कोठी क्षेत्र में पाई गई थी। इसके अलावा जिस कंप्यूटर पर दस्तावेज़ टाइप किए गए थे, उसकी हार्ड डिस्क पुलिस ने पहले ही जब्त कर ली थी।

अग्रिम जमानत और जांच पर प्रभाव
शुक्रवार को सत्र न्यायाधीश ने एडीजे विजेंद्र रावत को अग्रिम जमानत का लाभ प्रदान किया। जिला लोक अभियोजक अभिजीत सिंह राठौर ने बताया कि पुलिस की जांच रिपोर्ट के आधार पर विजेंद्र रावत को आरोपी बनाया गया था। अग्रिम जमानत मिलने के बाद अब पुलिस को रावत के बयान दर्ज करने और विस्तृत पूछताछ करने में कठिनाई हो सकती है।

इस जमानत से यह स्पष्ट हो गया है कि मामले की कानूनी प्रक्रिया और जांच दोनों पर एक नया दबाव बन गया है। न्यायिक और प्रशासनिक हलकों में यह मामला फिर से चर्चा का केंद्र बन गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि अग्रिम जमानत से जांच प्रक्रिया में देरी हो सकती है, क्योंकि अब पुलिस को न्यायालय की अनुमति और अतिरिक्त कागजी कार्रवाई पूरी करनी होगी।

फर्जी दस्तावेज़ों की जांच
पुलिस के अनुसार, जिन फर्जी दस्तावेजों की शिकायत की गई थी, वे अदालत के आदेशों की नकल थे। जांच में यह भी सामने आया कि दस्तावेज़ों को तैयार करने में तकनीकी उपकरणों का इस्तेमाल किया गया। पुलिस ने कंप्यूटर हार्ड डिस्क जब्त कर ली है और यह देख रही है कि दस्तावेज़ किस तरह तैयार किए गए और किस-किस की संलिप्तता रही।

संतोष वर्मा और प्रशासनिक जिम्मेदारी
इस मामले में आईएएस संतोष वर्मा की भूमिका भी जांच का मुख्य हिस्सा बनी हुई है। संतोष वर्मा पहले ही जमानत पर हैं और उनकी लोकेशन भी उसी समय फर्जी दस्तावेज़ बनाने के समय कोर्ट परिसर में पाई गई थी। इससे यह संकेत मिलता है कि आरोप केवल व्यक्तिगत स्तर तक सीमित नहीं हैं, बल्कि प्रशासनिक अधिकारियों की संलिप्तता का सवाल भी उठता है।

न्यायिक और प्रशासनिक हलकों की प्रतिक्रिया
इस घटना के बाद न्यायिक और प्रशासनिक हलकों में गंभीर चर्चा शुरू हो गई है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस प्रकार के मामले न्यायपालिका और प्रशासन के प्रति लोगों के विश्वास को प्रभावित कर सकते हैं। अग्रिम जमानत मिलने के बावजूद जांच पूरी करने का दबाव पुलिस और प्रशासन दोनों पर बना रहेगा।

भविष्य की कार्रवाई
जांच की रफ्तार अब यह तय करेगी कि आगे संतोष वर्मा और विजेंद्र रावत के खिलाफ और क्या कानूनी कार्रवाई की जाएगी। पुलिस अब दस्तावेज़ों और तकनीकी प्रमाणों के आधार पर विस्तृत जांच करेगी। अदालत ने जमानत देते समय यह स्पष्ट किया है कि मामले की जांच जारी रहेगी और दोषी पाए जाने पर दोनों आरोपी के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।

इस तरह, इंदौर का यह बहुचर्चित फर्जीवाड़ा मामला अब एक नए मोड़ पर पहुंच गया है। अग्रिम जमानत और जांच के नए तथ्य ने इसे कानूनी और प्रशासनिक दृष्टि से और भी संवेदनशील बना दिया है।

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