इंदौर वोटर लिस्ट घोटाला: 5.50 लाख नाम गायब, निर्वाचन आयोग ने शुरू की जांच
इंदौर वोटर लिस्ट घोटाला: 5.50 लाख नाम गायब, निर्वाचन आयोग ने शुरू की जांच

इंदौर। शहर की मतदाता सूची (Voter List) में बड़े पैमाने पर अनियमितताओं की खबर सामने आई है। सूत्रों के मुताबिक, इंदौर की मतदाता सूची से लगभग 5.50 लाख नाम गायब हो गए हैं, जिसे लेकर राजनीतिक और प्रशासनिक हलकों में हलचल तेज हो गई है। मामला अब भारत निर्वाचन आयोग (Election Commission of India) तक पहुँच गया है और आयोग ने इसे गंभीरता से लेते हुए जांच शुरू कर दी है।
पूर्व पार्षद और शिकायतकर्ता दिलीप कौशल ने आयोग को लिखित शिकायत भेजकर आरोप लगाया कि चुनाव से पहले फर्जी नाम हटाने के नाम पर लाखों वोटरों को सूची से बाहर कर दिया गया। कौशल का कहना है कि उन्हें निर्वाचन विभाग द्वारा प्रदान की गई रिपोर्टों और पत्रों में यह साफ संकेत था कि बड़ी संख्या में नाम हटाए गए। इसके अलावा, “SIR” कार्यक्रम के दौरान 5 लाख 50 हजार से अधिक मतदाता मौके पर नहीं पाए गए, जिससे अधिकारी की कार्यशैली और प्रक्रिया पर संदेह पैदा हुआ।
निर्वाचन आयोग ने शिकायत पर संज्ञान लेते हुए इंदौर के जिला निर्वाचन कार्यालय को आदेश दिया है कि वे शिकायतकर्ता से 12 दिसंबर को प्रमाण सहित बयान लें। आयोग की यह कार्रवाई इस बात का संकेत है कि मामला केवल स्थानीय विवाद तक सीमित नहीं है, बल्कि व्यापक स्तर पर वोटर सूची की विश्वसनीयता पर प्रश्न खड़ा कर रहा है।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यदि यह आरोप सही साबित होता है, तो आगामी चुनावों पर इसका बड़ा असर पड़ सकता है। मतदाता सूची में इतनी बड़ी संख्या में नाम गायब होने से चुनाव प्रक्रिया पर भरोसा कमजोर हो सकता है। वहीं, स्थानीय प्रशासन ने अभी तक इस मामले पर कोई स्पष्ट प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन आयोग की जांच के चलते स्थिति पर कड़ी निगरानी रखी जा रही है।
विशेषज्ञों का कहना है कि मतदाता सूची की सटीकता लोकतांत्रिक प्रक्रिया की नींव होती है। ऐसे में यदि फर्जी नामों को हटाने के नाम पर असली मतदाताओं के नाम हटाए गए हों, तो यह चुनावी प्रक्रिया के लिए गंभीर खतरा बन सकता है। आयोग की जांच और 12 दिसंबर को बयान तलब करना यह सुनिश्चित करेगा कि इस मामले में पारदर्शिता बनी रहे और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई हो।
हालांकि अभी तक निर्वाचन विभाग ने इस मामले को लेकर कोई विस्तृत जवाब नहीं दिया है। प्रशासन और आयोग की संयुक्त जांच से ही यह स्पष्ट हो पाएगा कि कितने नाम वास्तव में गलत तरीके से सूची से हटाए गए हैं और कितने असली मतदाता प्रभावित हुए हैं।
मामले की गंभीरता को देखते हुए राजनीतिक दलों और नागरिक संगठनों ने भी आयोग से कार्रवाई की मांग की है। आने वाले दिनों में यह मामला न केवल मीडिया बल्कि आम जनता के बीच भी चर्चा का प्रमुख विषय बना रहेगा।

