एमपी में बाबरी मस्जिद विवाद की गूंज: भाजपा नेता ने सार्वजनिक शौचालय का नाम रखा ‘बाबर शौचालय’
एमपी में बाबरी मस्जिद विवाद की गूंज: भाजपा नेता ने सार्वजनिक शौचालय का नाम रखा ‘बाबर शौचालय’

बाबरी मस्जिद विवाद की राजनीतिक गर्माहट अब मध्य प्रदेश तक पहुंच गई है। पश्चिम बंगाल में ‘बाबर’ के नाम पर शुरू हुआ विवाद अब अशोकनगर जिले में चर्चा का केंद्र बन गया है। यहां भाजपा के एक मंडल अध्यक्ष और किसान मोर्चा जिलाध्यक्ष बबलू यादव ने नगर पालिका के एक सार्वजनिक शौचालय का नाम ‘बाबर शौचालय’ रखकर स्थानीय स्तर पर राजनीतिक तापमान और बढ़ा दिया है। उन्होंने शौचालय के बाहर बाकायदा एक पट्टी लगाकर इसका नाम घोषित भी कर दिया है।
यह घटना शहर के तुलसी सरोवर के पास स्थित नगर पालिका के पुराने शौचालय से जुड़ी है। बबलू यादव का कहना है कि भारत वीरता, त्याग और संस्कृति का देश है। यहां महाराणा प्रताप और छत्रपति शिवाजी जैसे महापुरुषों की परंपरा रही है, जिन्होंने विदेशी आक्रमणकारियों के खिलाफ संघर्ष किया। उनका आरोप है कि बाबर एक आक्रांता था जिसने भारत पर हमला किया, हिंदू मंदिरों को क्षति पहुंचाई और देश की संपत्ति को लूटा। यादव का कहना है कि ऐसे व्यक्ति के नाम पर मस्जिदों या स्थलों का निर्माण करना इतिहास और संस्कृति के साथ अन्याय है।
उन्होंने बयान देते हुए कहा कि बाबर का नाम यदि कहीं होना चाहिए तो वह किसी सम्मानजनक स्थान पर नहीं बल्कि सार्वजनिक शौचालय पर ही होना चाहिए। इसलिए उन्होंने इस शौचालय का नाम ‘बाबर शौचालय’ रखने का निर्णय लिया। यह कदम उन्होंने एक प्रतीकात्मक विरोध के रूप में उठाया है ताकि लोगों तक यह संदेश पहुंचे कि आक्रमणकारियों का महिमामंडन नहीं होना चाहिए।
इस विवाद की जड़ पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले से शुरू होती है। छह दिसंबर को बाबरी मस्जिद विध्वंस की बरसी के अवसर पर तृणमूल कांग्रेस के विधायक हुमायूं कबीर ने स्थानीय बेलडंगा में एक मस्जिद की नींव रखी थी। हालांकि इस कदम को लेकर राज्य की सत्ताधारी टीएमसी ने उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया था, लेकिन बावजूद इसके कबीर ने मस्जिद निर्माण की प्रक्रिया प्रारंभ कर दी। इस घटना ने देशभर में कई हिंदू संगठनों को आक्रोशित कर दिया और विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए।
इसी विरोध की लहर अब अशोकनगर तक पहुंची है, जहां भाजपा नेता द्वारा उठाया गया यह कदम नए विवाद को जन्म दे रहा है। यह स्पष्ट है कि बाबरी मस्जिद और बाबर से जुड़े मुद्दे अब भी देश की राजनीति में बेहद संवेदनशील हैं और किसी भी घटना से माहौल तेज़ी से गरम हो जाता है।
हालांकि नगर पालिका या जिला प्रशासन की ओर से अभी इस नामकरण पर आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। लेकिन स्थानीय स्तर पर इस मुद्दे पर चर्चा तेज है और सोशल मीडिया पर भी इसे लेकर बहस जारी है। कुछ लोग इसे सांस्कृतिक चेतना और विरोध का प्रतीक बता रहे हैं, जबकि कुछ इसे अनावश्यक राजनीति करार दे रहे हैं।





