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झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन का निधन

आदिवासी अधिकारों की लड़ाई के प्रतीक थे शिबू सोरेन

Shibu Soren Death: झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक शिबू सोरेन का आज 81 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उनके निधन की पुष्टि उनके पुत्र और राज्य के वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ के माध्यम से की।

Shibu Soren Death
Shibu Soren Death

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने गहरे दुख के साथ लिखा, “आदरणीय दिशोम गुरुजी हम सभी को छोड़कर चले गए हैं। आज मैं शून्य हो गया हूं।” शिबू सोरेन को आदिवासी समुदाय में एक आंदोलनकारी और जननायक के रूप में जाना जाता रहा है। उन्होंने झारखंड की अलग पहचान, आदिवासी अधिकारों और सामाजिक न्याय के लिए लंबा संघर्ष किया। उनकी मौत से न केवल झारखंड, बल्कि देश की राजनीति को भी गहरा आघात पहुंचा है।

राज्य में राजकीय शोक की घोषणा

सरकार ने राज्य में राजकीय शोक की घोषणा की है, और उनके सम्मान में तमाम सरकारी कार्यक्रम स्थगित कर दिए गए हैं। देशभर से राजनेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने उनके निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है। शिबू सोरेन के निधन पर केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने संवेदना जताते हुए कहा कि –

Shibu Soren Death
Shibu Soren Death

“झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और देश के वरिष्ठतम नेताओं में से एक शिबू सोरेन जी झारखंड के उन कद्दावर नेताओं में गिने जाते थे, जिन्होंने समाज के कमजोर वर्गों विशेष रूप से जनजातीय समाज के अधिकारों और उनके सशक्तिकरण के लिए आजीवन संघर्ष किया। वे हमेशा जमीन और जनता से जुड़े रहे, मेरा भी उनसे लंबा परिचय रहा आज उनके निधन से मुझे बहुत दुख हुआ है। उनके परिवार एवं समर्थकों के प्रति मेरी संवेदनायें, ओम् शांति..!

झारखंड बनाने में निर्णायक भूमिका

बता दें कि, शिबू सोरेन पिछले 38 सालों से झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रमुख नेता थे। उन्हें पार्टी के संस्थापक संरक्षक के रूप में जाना जाता था, पूर्व मुख्यमंत्री सोरेन का जन्म 11 जनवरी, 1944 को बिहार अब झारखंड के हजारीबाग में हुआ था। उन्हें दिशोम गुरु और गुरुजी के नाम से भी जनता के बीच जाना जाता रहा, उन्होंने शुरुआत में आदिवासियों के शोषण के खिलाफ संघर्ष किया और 70 के दशक में ‘धनकटनी आंदोलन’ और अन्य आंदोलनों के जरिए आदिवासी समाज की आवाज बुलंद की।

बिहार से अलग राज्य ‘झारखंड’ बनाने के आंदोलन में भी उनका निर्णायक भूमिका रही है। वे तीन बार (2005, 2008, 2009) झारखंड के मुख्यमंत्री बने, लेकिन एक बार भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके।

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