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इंदौर में स्कीम 54 की चार मंज़िला इमारत जमींदोज़, भ्रष्टाचार और जवाबदेही पर उठे सवाल

इंदौर की पॉश स्कीम 54 में नगर निगम द्वारा चार मंज़िला इमारत को विस्फोट से गिरा दिया गया। यह कार्रवाई पहले तो अवैध निर्माण के आधार पर की गई, लेकिन इसके पीछे घूसखोरी, राजनैतिक दबाव और नगर निगम अधिकारियों की लापरवाही के गंभीर आरोप सामने आ रहे हैं।

क्या था मामला?

स्कीम 54 के PU-4 सेक्टर में प्लॉट नंबर 234 पर डॉ. बिहार मुंशी द्वारा बनाई गई इमारत को नगर निगम ने अवैध बताते हुए नोटिस दिया था। जब कोर्ट से राहत नहीं मिली तो कार्रवाई का रास्ता साफ हो गया। पहले दिन निगम की रिमूवल टीम ने तोड़फोड़ की, लेकिन पूरी इमारत नहीं गिर सकी। अगले दिन इमारत को विस्फोटक सामग्री से उड़ाकर ज़मीनदोज़ कर दिया गया।

डॉ. मुंशी के आरोप: घूस नहीं दी इसलिए इमारत तोड़ी गई

डॉ. मुंशी का आरोप है कि निगम अधिकारियों ने उनसे बड़ी रकम की रिश्वत मांगी थी। कुछ पैसे तो ऑनलाइन भी दिए गए, जो उनके अनुसार घूस का सीधा सबूत है। लेकिन जब उन्होंने पूरी रकम देने से इनकार कर दिया और शिकायत पार्षद और राज्य सरकार के मंत्रियों तक पहुँची, तो निगम अधिकारी चिढ़ गए। नतीजा यह हुआ कि पूरी बिल्डिंग को ही गिरा दिया गया।

नक्शा पास, फिर भी कार्रवाई क्यों?

डॉ. मुंशी के अनुसार, उन्होंने 2020 में यह प्लॉट IDA (इंदौर विकास प्राधिकरण) से खरीदा था और 2021 में नगर निगम से नक्शा पास करवाया था। तब किसी अधिकारी ने यह नहीं बताया कि यह निर्माण नाले से नौ मीटर के अंदर है, या अवैध है। इमारत बनने के बाद ही यह आपत्ति क्यों उठाई गई?

नगर निगम अब भूकंप विकास नियमों का हवाला दे रहा है और कह रहा है कि नाले के नजदीक निर्माण नियमों के विरुद्ध है। लेकिन सवाल यह है कि जब नक्शा पास किया गया, तब क्यों नहीं जांच की गई?

वैध हिस्से को भी गिराया गया?

डॉ. मुंशी का कहना है कि सिर्फ आगे-पीछे कुछ फुट का हिस्सा अवैध था, जिसकी कंपाउंडिंग के लिए उन्होंने आवेदन भी दिया था। इसके बावजूद इमारत के पूरे वैध हिस्से को भी तोड़ दिया गया। यह गंभीर लापरवाही है, जिसकी भरपाई कौन करेगा?

भ्रष्टाचार का खुलासा, अधिकारियों पर कार्रवाई

जब मामला तूल पकड़ने लगा और भ्रष्टाचार के आरोपों की गूंज राजनीतिक गलियारों तक पहुँची, तो निगम ने आनन-फानन में भवन अधिकारी और निरीक्षक को हटा दिया। पहले दिन की कार्रवाई में अधिकारी किवराज सिंह यादव मौजूद थे, जबकि दूसरे दिन की पूरी कार्रवाई की जिम्मेदारी अधिकारी अक्षित खरे को दी गई। यह बदलाव बताता है कि मामला गंभीर था और कुछ न कुछ गड़बड़ अवश्य हुई थी।

राजनीतिक दबाव और जवाबदेही

नगर निगम के इस रवैये पर सवाल उठ रहे हैं कि क्या यह केवल कानून का पालन था या फिर व्यक्तिगत रंजिश और रिश्वत के खेल का परिणाम? स्थानीय नेताओं की दखल के बाद कार्रवाई में तेजी आना भी इस बात की ओर इशारा करता है कि कहीं न कहीं सत्ता और प्रशासन की मिलीभगत से यह निर्णय लिया गया।

निष्कर्ष

यह मामला इंदौर जैसे विकसित होते शहर में प्रशासनिक पारदर्शिता और जवाबदेही पर गहरा सवाल उठाता है। जहां एक तरफ अवैध निर्माण पर कार्रवाई जरूरी है, वहीं घूसखोरी और वैध हिस्सों को नुकसान पहुंचाना एक गंभीर अपराध है। शासन को चाहिए कि ऐसे मामलों की निष्पक्ष जांच कराए और दोषी अधिकारियों पर कठोर कार्रवाई की जाए।

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