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गुरु पूर्णिमा के पावन पर्व पर सुनें ये व्रत कथा

चंद्रमा को अर्घ्य देने से मिलती है चंद्र दोष से मुक्ति

Guru Purnima Vrat Katha: हिंदू धर्म में ज्ञान, प्रेरणा और मार्गदर्शन के लिए गुरु का बहुत महत्व है। गुरु वे होते हैं जो अंधकार में प्रकाश लाते हैं, अज्ञानता को दूर करते हैं और हमें जीवन का सही मार्ग दिखाते हैं। गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा और वेद पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। क्यूंकि, इसी दिन महर्षि वेदव्यास का जन्म भी हुआ था।

Guru Purnima Vrat Katha
Guru Purnima Vrat Katha

पंचांग के अनुसार, आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा मनाते हैं। गुरु पूर्णिमा के दिन लोग महर्षि वेदव्यास जी की पूजा करके अपने गुरुजनों का भी आशीर्वाद लेते हैं। इस बार गुरु पूर्णिमा 10 जुलाई यानी मनाई जा रही है।

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः,

गुरुः साक्षात्‌ परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥

इस श्लोक के अनुसार, गुरु को ब्रह्मा-विष्णु-महेश के बराबर माना जाता है और उन्हीं की पूजा अर्चना और आराधना करने के लिए की गुरु पूर्णिमा का पावन पर्व मनाया जाता है। गुरु पूर्णिमा पर चंद्रमा की पूजा का भी विशेष महत्व होता है, चंद्रोदय होने के बाद चंद्रमा की पूजा की जाती है और चंद्रमा को अर्घ्य देने से चंद्र दोष से मुक्ति मिलती है।

Guru Purnima Vrat Katha
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गुरु पूर्णिमा व्रत कथा

पैराणिक कथा के अनुसार, ऋषि पराशर और माता सत्यवती के घर भगवान विष्णु के अंश से महर्षि वेदव्यास जी का जन्म हुआ। इसलिए इन्हे कृष्ण द्वैपायन के नाम से भी जाना जाता हैं। महर्षि वेदव्यास जी को बचपन से ही अध्यात्म में बहुत रुचि थी। एक बार उन्होंने अपने माता-पिता से प्रभु के दर्शन करने की इच्छा प्रकट की और वन में तपस्या करने की अनुमति मांगी। वेदव्यास जी की इस बात को सुनकर उनकी माता ने उन्हें वन जाने को मना कर दिया था।

माता की इस बात को सुनकर वेदव्यास जी वन जाने की हट करने लगें. वेदव्यास जी के हट करने की वजह से माता सत्यवती को उन्हें वन जाने की आज्ञा देनी पड़ी। जब वेदव्यास जी वन की ओर जा रहे थे, तब उनकी माता ने उनसे कहा कि, जब तुम्हें अपने घर की याद आ जाए तो तुम वापस आ जाना, माता के इस वचन को सुनकर वेदव्यास जी वन की तरफ चल दिए। वन में जाकर वेदव्यास जी कठोर तपस्या करने लगें. भगवान के आशीर्वाद से वेदव्यास जी को संस्कृत भाषा का ज्ञान हो गया। इसके बाद उन्होंने वेद, महाभारत 18 महापुराणों एवं ब्रह्म सूत्र की रचना की. लोगों को वेदों का ज्ञान देने की वजह से आज भी इन्हें गुरु पूर्णिमा के दिन प्रथम गुरु के रूप में याद किया जाता है।

Guru Purnima Vrat Katha
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कौन हो सकता है आपका गुरु ?

हम लोग शिक्षा प्रदान करने वाले को ही गुरु समझते हैं। वास्तव में ज्ञान देने वाला शिक्षक बहुत आंशिक अर्थों में गुरु होता है। जो व्यक्ति या सत्ता ईश्वर तक पहुंचा सकती हो उस सत्ता को गुरु कहते हैं। गुरु होने की तमाम शर्तें बताई गई हैं जैसे शांत, कुलीन, विनीत, शुद्धवेषवाह, शुद्धाचारी और सुप्रतिष्ठित आदि। गुरु प्राप्ति के बाद कोशिश करें कि उनके निर्देशों का पालन करें।

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