टॉप-न्यूज़विदेश

चीन-अमेरिका ट्रेड डील 2025: दुर्लभ खनिजों के बदले शिक्षा और सहयोग का नया अध्याय

अमेरिका और चीन के बीच लंबे समय से चले आ रहे व्यापारिक तनावों में अब एक नया मोड़ आया है। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में घोषणा की है कि दोनों देशों के बीच एक नई ट्रेड डील फाइनल हो गई है। इस समझौते की खास बात यह है कि इसके तहत चीन अमेरिका को दुर्लभ खनिज और इंडस्ट्रियल मैग्नेट्स सप्लाई करेगा, जबकि अमेरिका चीनी छात्रों को उच्च शिक्षा के लिए फिर से अपने विश्वविद्यालयों में प्रवेश की अनुमति देगा।

क्या है इस नई ट्रेड डील की मुख्य बातें?

ट्रंप ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पूर्व ट्विटर) पर यह जानकारी साझा की और इसे “एक्सीलेंट रिलेशनशिप” का प्रतीक बताया। उन्होंने कहा कि अब सिर्फ इस डील को उनके और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की औपचारिक स्वीकृति की आवश्यकता है। उन्होंने यह भी दावा किया कि:

दुर्लभ खनिजों की अहम भूमिका

इस डील का सबसे महत्वपूर्ण पहलू रेयर अर्थ मिनरल्स (Rare Earth Minerals) की आपूर्ति है। चीन दुनिया का सबसे बड़ा रेयर अर्थ उत्पादक देश है और ये खनिज इलेक्ट्रॉनिक्स, ग्रीन एनर्जी, डिफेंस और EV इंडस्ट्रीज के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।

इस डील के तहत चीन अमेरिका को इन खनिजों की स्थिर और पूर्व-निर्धारित आपूर्ति सुनिश्चित करेगा। इससे अमेरिकी टेक और ऊर्जा कंपनियों को राहत मिलेगी, जो बीते वर्षों में चीन पर अत्यधिक निर्भरता को लेकर चिंतित थीं।

शिक्षा के मोर्चे पर अमेरिका की रियायत

इसके बदले में अमेरिका ने चीनी छात्रों के लिए अपने कॉलेज और यूनिवर्सिटीज के द्वार खोलने की बात की है। ट्रंप ने स्पष्ट किया कि यह निर्णय अमेरिका के शैक्षणिक संस्थानों में बढ़ती वैश्विक भागीदारी को ध्यान में रखते हुए लिया गया है। उन्होंने कहा कि:

“चीनी छात्रों को अमेरिका में शिक्षा प्राप्त करने की पहले से अनुमति थी, और यह डील उस विश्वास को फिर से मजबूत करती है।”

जेनिवा में हुई थी प्रारंभिक बातचीत

इस डील का आधार मई में जेनिवा में हुई द्विपक्षीय बातचीत में रखा गया था, जहाँ दोनों देशों ने टैरिफ में आंशिक छूट देने और व्यापार संतुलन को सुधारने पर सहमति जताई थी। लेकिन अब यह समझौता व्यापक स्वरूप ले चुका है, जिसमें दोनों देश रणनीतिक सहयोग की ओर बढ़ते दिखाई दे रहे हैं।

राजनीतिक और रणनीतिक प्रभाव

इस डील को लेकर अंतरराष्ट्रीय विश्लेषकों और संगठनों में मिश्रित प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं। एक ओर अमेरिका की तकनीकी और ऊर्जा कंपनियां इससे खुश हैं, तो दूसरी ओर कुछ राजनीतिक समूहों और मानवाधिकार संगठनों ने इस पर नाराज़गी जताई है। उनका मानना है कि अमेरिका को शिक्षा और तकनीक के मामलों में चीन को अधिक रियायत नहीं देनी चाहिए थी।

निष्कर्ष

यह ट्रेड डील सिर्फ आर्थिक या टैरिफ समझौता नहीं है, बल्कि यह विश्व राजनीति में अमेरिका और चीन के बदलते समीकरणों का भी संकेत देती है। चीन द्वारा अमेरिका को खनिजों की आपूर्ति और अमेरिका द्वारा चीनी छात्रों को शिक्षा की अनुमति देना — ये दोनों कदम भविष्य के सहयोग और प्रतिस्पर्धा दोनों की नींव रख सकते हैं।

अगर यह डील शी जिनपिंग और ट्रंप की औपचारिक मंजूरी पा जाती है, तो यह न सिर्फ व्यापारिक संतुलन को प्रभावित करेगी, बल्कि अमेरिकी-चीनी संबंधों में एक नए युग की शुरुआत भी करेगी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also
Close
मेना फोन पर ट्रंप का निमंत्रण को ठुकरा दिया राजा, राज सोनम और वो के बीच उलझी हत्याकांड की कहानी BJP नेता के CNG पंप पर पैसों को लेकर विवाद बढ़ा। ईरान से भारतीयों को रेस्क्यू करने के ऑपरेशन को सरकार ने ‘ऑपरेशन सिंधु’ नाम दिया है।