केंद्र सरकार का बड़ा फैसला: अब ‘सेवातीर्थ’ कहलाएगा पीएमओ, देशभर के राजभवन बनेंगे ‘लोकभवन’
केंद्र सरकार का बड़ा फैसला: अब ‘सेवातीर्थ’ कहलाएगा पीएमओ, देशभर के राजभवन बनेंगे ‘लोकभवन’

केंद्र सरकार ने किया ऐतिहासिक बदलाव: पीएमओ का नया नाम ‘सेवातीर्थ’
केंद्र सरकार ने प्रशासनिक ढांचे में ऐतिहासिक बदलाव करते हुए देश में कई प्रमुख संस्थानों के नाम बदलने का फैसला लिया है। प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO), जिसे अब तक देश की सर्वोच्च कार्यकारी संस्था के रूप में जाना जाता था, का नाम बदलकर ‘सेवातीर्थ’ कर दिया गया है। सरकार का कहना है कि यह नाम सेवा, कर्तव्य और राष्ट्र समर्पण की भारतीय भावना को और अधिक मजबूती से दर्शाता है।
नई नामकरण व्यवस्था का उद्देश्य केवल बदलाव करना नहीं, बल्कि शासन की उस पारंपरिक भारतीय सोच को पुनर्जीवित करना है, जिसमें सत्ता का केंद्र आदेश नहीं बल्कि सेवा और त्याग की भावना पर आधारित होता है।
देशभर के राजभवन अब कहलाएंगे ‘लोकभवन’
इस बड़े फैसले के साथ केंद्र सरकार ने देश के सभी राज्यों में स्थित राजभवनों का नाम बदलकर ‘लोकभवन’ कर दिया है।
राजभवन लंबे समय से राज्यपालों के आधिकारिक निवास के रूप में जाने जाते रहे हैं, लेकिन सरकार का मानना है कि “राज” शब्द उपनिवेशकालीन मानसिकता का प्रतीक है।
‘लोकभवन’ नाम जनता-केन्द्रित प्रशासन के नए युग का प्रतिनिधित्व करेगा। यह परिवर्तन शक्ति के केंद्रीकरण की जगह जनता से जुड़ी संवेदनाओं को महत्व देने की दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा है।
केंद्रीय सचिवालय का नया नाम — ‘कर्तव्य भवन’
इसी क्रम में केंद्र सरकार ने यह भी घोषणा की है कि केंद्रीय सचिवालय, जहां देश की नीतियां, फैसले और प्रशासनिक कार्यों का संचालन होता है, का नाम अब ‘कर्तव्य भवन’ होगा।
‘कर्तव्य भवन’ नाम का उद्देश्य सरकार और प्रशासन के मूल सिद्धांत—कर्तव्यपालन और ईमानदारी से सेवा—को मजबूती से स्थापित करना है। इस बदलाव के बाद शासन तंत्र की छवि जनता के प्रति जिम्मेदारी और सक्रिय सेवा भावना से अधिक जुड़ने की उम्मीद है।
नाम बदलाव का उद्देश्य: औपनिवेशिक प्रतीकों से मुक्ति
सरकार का कहना है कि ये नाम परिवर्तन केवल औपचारिक बदलाव नहीं, बल्कि मानसिकता में परिवर्तन हैं। औपनिवेशिक दौर के कई शब्द आज भी भारत के प्रशासनिक तंत्र में उपयोग किए जाते रहे हैं।
इन शब्दों को बदलकर सरकार का प्रयास है कि शासन की पहचान भारतीय संस्कृति, नागरिक-सेवा और जनकल्याण की भावना से जुड़े नए शब्दों से की जाए।
इसके अलावा, सरकार का दावा है कि इससे नई पीढ़ी शासन को अधिक आत्मीय, भारतीय और नागरिक-केंद्रित दृष्टिकोण से देख सकेगी।

राजनीतिक प्रतिक्रिया और जनता की उम्मीदें
इन बदलावों पर जहां शासन समर्थकों ने इसे स्वागत योग्य बताया है, वहीं विपक्षी दलों ने तर्क दिया है कि केवल नाम बदलने से प्रशासनिक गुणवत्ता में परिवर्तन नहीं आएगा।
हालांकि यह तथ्य भी सच है कि ऐसे परिवर्तन प्रतीकात्मक होते हुए भी एक नए सोच के द्वार खोलते हैं और शासन को नई पहचान देते हैं।
जनता की बड़ी संख्या इस बात को लेकर उत्साहित है कि सरकार ने “राज” की जगह “लोक” और “सेवा” जैसे शब्दों को प्राथमिकता दी है, जो भारतीय लोकतंत्र की मूल भावना के और अधिक करीब हैं।

