शिबू सोरेन को अंतिम विदाई आज
तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने लेकिन कभी न पूरा कर सके कार्यकाल

Shibu Soren Death: झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन को मंगलवार को झारखंड विधानसभा परिसर से राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी जाएगी। मुख्यमंत्री कार्यालय ने बताया कि श्रद्धांजलि समारोह के बाद उनके पार्थिव शरीर को रामगढ़ जिले के उनके पैतृक गांव नेमरा ले जाया जाएगा। 81 वर्षीय शिबू सोरेन का सोमवार को लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। वह पिछले दो महीनों से अस्वस्थ चल रहे थे।

शिबू सोरेन, जिन्हें ‘गुरुजी’ के नाम से भी जाना जाता था, झारखंड की राजनीति में एक मजबूत आदिवासी आवाज माने जाते थे। उन्होंने आदिवासी अधिकारों, जल-जंगल-जमीन के मुद्दों और सामाजिक न्याय के लिए दशकों तक संघर्ष किया। उनके निधन से झारखंड की राजनीतिक और सामाजिक धरातल पर गहरी शून्यता महसूस की जा रही है। राज्य सरकार ने उनके सम्मान में राजकीय शोक की घोषणा की है।
यादों में रह गए दिशोम गुरु शिबू सोरेन
दिशोम गुरु शिबू सोरेन अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी खुशबु आज भी झारखंड की मिट्टी में महक रही है। एक आवाज़, जिसने आदिवासियों को सिर्फ हक नहीं दिलाया, बल्कि उन्हें खुद पर यक़ीन करना सिखाया। एक नेता, जिसने धान कटनी आंदोलन से लेकर संसद की सीढ़ियों तक, हर संघर्ष में आदिवासियों की पीठ पर हाथ रखा।

एक व्यक्तित्व, जिन्हें झारखंड ने दिया था ‘दिशोम गुरु’ का सम्मान — मतलब, जो देश को दिशा दे। हम बात कर रहे हैं — शिबू सोरेन की। झारखंड आंदोलन का वो चेहरा, जो अब सिर्फ तस्वीरों में मुस्कुराएगा…लेकिन जिनकी आंखों में देखा गया सपना, आज भी झारखंड के हर खेत, हर गांव, हर दिल में धड़कता है।धान कटनी से लेकर दिल्ली की सत्ता तक शिबू सोरेन ने राजनीति को गद्दी का नहीं, जंग का मैदान समझा।
धान कटनी आंदोलन
पिता की हत्या ने उन्हें महाजनी प्रथा के खिलाफ खड़ा कर दिया जहां सूदखोरी में डूबे आदिवासियों को उन्होंने बताया धान लगाएगा जो वही उसे काटेगा महाजन नहीं यही बना धान कटनी आंदोलन, और यहीं से बना झारखंड मुक्ति मोर्चा, जिसकी रगों में बहता था आदिवासी अस्मिता का खून। दिनभर मेहनत करने वालों के लिए वो रात को रात्रि पाठशाला चलाते थे।

कहते थे -शादी और त्योहारों पर खर्च कम करो… और पढ़ाई पर लगाओ। उनका पहला भाषण संसद में शराब के खिलाफ था। क्योंकि वो जानते थे आदिवासियों की आज़ादी केवल राजनीतिक नहीं, सामाजिक और मानसिक बेड़ियों से भी होनी चाहिए। शिबू तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने, केंद्रीय कोयला मंत्री भी रहे, लेकिन हर बार या तो बहुमत से चूके या कानूनी तूफानों में घिर गए। फिर भी पीछे नहीं हटे। हर बार लड़े…हर बार लौटे…हर बार आदिवासी समाज के लिए कुछ नया लेकर आए।