हिंदू धर्म में सूर्य देवता से जुड़े कई प्रमुख त्योहारों को मनाने की विशेष परंपरा है। इन्हीं में से एक है मकर संक्रांति, शास्त्रों में मकर संक्रांति पर स्नान, ध्यान और दान का विशेष महत्व बताया गया है।
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मकर संक्रांति पर खरमास का समापन हो जाता है और शादी-विवाह जैसे शुभ और मांगलिक कार्यों पर लगी रोक हट जाती है। ऐसी मान्यता है कि, इस दिन किया गया दान सौ गुना होकर वापस लौटता है। आइए आपको मकर संक्रांति से जुड़ी चार प्रमुख कथाओं के बारे में बताते हैं –
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देवताओं का दिन –
सूर्य का मकर राशि में प्रवेश यानी मकर संक्रांति दान, पुण्य की पावन तिथि है। इसे देवताओं का दिन भी कहा जाता है, क्यूंकि इसी दिन से सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं। शास्त्रों में उत्तरायण के समय को देवताओं का दिन और दक्षिणायन को देवताओं की रात कहा गया है। मकर संक्रांति एक तरह से देवताओं की सुबह होती है। पौराणिक कथा कहती है कि ये तिथि उत्तरायण की तिथि होती है।
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भीष्म पितामह ने त्यागी थी देह –
महाभारत युद्ध में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति का ही चयन किया था। जब वे बाणों की शैया पर लेटे हुए थे, तब वे उत्तरायण के दिन की प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्होंने मकर संक्रांति की तिथि पर ही अपना जीवन त्यागा था। ऐसा कहते हैं कि, उत्तरायण में देह त्यागने वाली आत्माएं कुछ पल के लिए देवलोक चली जाती हैं या फिर उन्हें पुनर्जन्म के चक्र से छुटकारा मिल जाता है।
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सागर में जाकर मिली थी गंगा –
आज ही के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं। महाराज भगीरथ ने इस दिन अपने पूर्वजों के लिए तर्पण किया था। इसलिए मकर संक्रांति पर पश्चिम बंगाल के गंगासागर में मेला भी लगता है।
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पिता-पुत्र का मिलन –
मकर संक्रांति का त्योहार इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस दिन सौर्य मंडल के राजा सूर्य अपने पुत्र शनि की राशि मकर में पूरे एक महीने के लिए आते हैं। इसलिए इस दिन को पिता-पुत्र का मिलन दिवस भी कहा जाता हैं।
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