7 साल बाद फिर खुला खुशी कुलवाल सुसाइड केस: सियासी गलियारों में हलचल, मंत्री और BJP नेता पर गंभीर आरोप

मध्य प्रदेश की व्यावसायिक राजधानी इंदौर के प्रतिष्ठित यशवंत क्लब की सदस्य रही खुशी कुलवाल की आत्महत्या की गुत्थी एक बार फिर से सुर्खियों में है। यह मामला 2018 में बंद हो चुका था, लेकिन अब सात साल बाद एक बार फिर इस पर जांच शुरू होने की खबर ने राजनीतिक हलकों में सनसनी फैला दी है। इस केस में अब भाजपा से जुड़े प्रभावशाली नेताओं और एक वर्तमान मंत्री की भूमिका पर सवाल उठने लगे हैं।
खुशी कुलवाल कौन थीं?
2017-18 के दौरान खुशी कुलवाल यशवंत क्लब की चर्चित और सामाजिक रूप से सक्रिय सदस्य थीं। उनका नाम इंदौर के कई रसूखदार लोगों के साथ जोड़ा जाता रहा। खुशी अपने करियर, व्यक्तित्व और सामाजिक जुड़ाव के कारण युवाओं के बीच चर्चित चेहरा बन चुकी थीं।
उन्होंने युवाओं के लिए फिटनेस और हेल्थ अवेयरनेस के क्षेत्र में कई कार्यक्रम आयोजित किए थे। उनके संपर्कों में बड़ी संख्या में कारोबारी, सरकारी अधिकारी, नेता और फिल्मी हस्तियाँ शामिल थीं।
मौत की वजह: आत्महत्या या दबाव?
खुशी कुलवाल की आत्महत्या ने 2018 में पूरे इंदौर को हिला दिया था। उनकी मौत को शुरू में निजी कारणों से जोड़कर आत्महत्या बताया गया। पुलिस रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने ड्रग्स की लत, अवसाद और निजी संबंधों में विफलता के कारण आत्महत्या की थी। लेकिन यह कहानी जितनी सरल दिखाई दी, उतनी थी नहीं।
जांच में यह सामने आया था कि खुशी को कई रसूखदार लोगों के द्वारा मानसिक और सामाजिक रूप से प्रताड़ित किया जा रहा था। उनके मोबाइल और सोशल मीडिया डेटा से कई ऐसी बातचीत सामने आई थीं जो स्पष्ट रूप से दबाव और भय का संकेत देती थीं।
संदेह के घेरे में मंत्री कैलाश विजयवर्गीय और भाजपा नेता सुनील नमस्या
7 साल बाद इस केस की फाइल दोबारा खुली है और उसमें भाजपा के कद्दावर नेता व केंद्रीय मंत्री कैलाश विजयवर्गीय तथा इंदौर के प्रमुख भाजपा नेता सुनील नमस्या की भूमिका पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। यह मामला तब गरमाया जब कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष जीतू पटवारी के भाई का नाम भी जांच में सामने आया।
कांग्रेस और विपक्षी दलों ने भाजपा पर इस केस को राजनीतिक दबाव में दबाने का आरोप लगाया है।
राजनीतिक चुप्पी और सवालों की बौछार
राजनीति में कई बार पुराने मामलों को पुनर्जीवित किया जाता है, लेकिन खुशी कुलवाल का मामला एक गंभीर सामाजिक और नैतिक प्रश्न उठाता है—क्या हमारे सिस्टम में इतनी ताकत है कि वह प्रभावशाली लोगों को न्याय के कटघरे तक ला सके?
खुशी कुलवाल के परिजनों ने शुरू से ही इस केस की उच्चस्तरीय जांच की मांग की थी, लेकिन 2018 में कुछ दिन जांच के बाद इसे “निजी अवसाद” का मामला बताकर बंद कर दिया गया।
अब जब फिर से यह केस खुला है, तो क्या वह सभी नाम सामने आएंगे जिनके कारण एक युवती ने जीवन समाप्त किया?
पारिवारिक मित्रों और क्लब सदस्यों के खुलासे
यशवंत क्लब के कुछ सदस्यों और खुशी के करीबी मित्रों ने गुप्त रूप से मीडिया को जानकारी दी है कि खुशी कई महीनों से तनाव में थीं। उन्होंने कई बार यह बात कही थी कि “अगर मैं कुछ कर लूं तो मेरी मौत को आत्महत्या समझा जाएगा, जबकि यह सच नहीं होगा।”
इस कथन से स्पष्ट है कि वह लगातार किसी दबाव में थीं, और संभवतः उन्हें कोई गंभीर धमकी या ब्लैकमेल किया जा रहा था।
ड्रग्स और हाई-प्रोफाइल नेटवर्क का कनेक्शन
खुशी कुलवाल के केस में ड्रग्स की बात भी सामने आई थी। यह आरोप लगाया गया कि उन्हें जानबूझकर नशे की दुनिया में धकेला गया। इसके पीछे हाई-प्रोफाइल नेटवर्क का हाथ बताया जा रहा है, जिसमें कई बड़े उद्योगपति, अफसर और राजनेता शामिल थे।
खुशी ने जिन लोगों के साथ पार्टियों में हिस्सा लिया, वे सभी अब जांच के दायरे में हैं।
फिर क्यों बंद कर दी गई थी जांच?
2018 में जांच कुछ समय चली, लेकिन बाद में इसे बंद कर दिया गया। यह सवाल अभी भी अनुत्तरित है कि क्यों एक हाई-प्रोफाइल केस को बिना किसी निष्कर्ष के बंद कर दिया गया?
राजनीतिक हस्तक्षेप, प्रभावशाली आरोपियों के नाम, और मीडिया से दूरी बनाए रखना, इन सभी ने मामले को दबाने में मदद की।
कांग्रेस का आरोप और बीजेपी की सफाई
कांग्रेस ने खुलकर भाजपा और विजयवर्गीय पर आरोप लगाया है। कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि यदि सही समय पर निष्पक्ष जांच होती तो कई बड़े नाम उजागर हो जाते।
वहीं भाजपा की ओर से मंत्री विजयवर्गीय ने कहा कि “मैं किसी के निजी जीवन पर टिप्पणी नहीं करता। जिस महिला की मृत्यु की बात की जा रही है, उसके परिवार को न्याय मिले, लेकिन मेरा इससे कोई लेना-देना नहीं है।”