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चीन में डिजिटल निगरानी का नया अध्याय: इंटरनेट आईडी से झूठ बोले तो अकाउंट सीधा बंद

चीन में इंटरनेट पर पहले से ही सख्त नियंत्रण है, लेकिन अब राष्ट्रपति शी जिनपिंग के नेतृत्व में यह नियंत्रण और भी ज्यादा सख्त होने जा रहा है। चीनी सरकार “नेशनल इंटरनेट आईडी” सिस्टम लागू करने जा रही है — एक ऐसी डिजिटल पहचान प्रणाली, जिससे हर यूज़र की ऑनलाइन गतिविधियाँ और पहचान सीधे जुड़ जाएंगी।

क्या है इंटरनेट आईडी?

यह इंटरनेट आईडी कार्ड चीन का एक ऐसा डिजिटल टूल है, जो यूज़र की वास्तविक पहचान को उनके सभी ऑनलाइन अकाउंट्स से जोड़ेगा। यानी अगर कोई व्यक्ति सरकार के खिलाफ लिखता है, फेक न्यूज फैलाता है या अपनी पहचान छुपाता है — तो सीधे अकाउंट सस्पेंड किया जा सकता है।

सरकार ने इसे फिलहाल “स्वैच्छिक” (वॉलंटरी) बताया है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि इसे धीरे-धीरे अनिवार्य बना दिया जाएगा। सरकारी मीडिया के अनुसार, अब तक 60 लाख यूज़र्स इस सिस्टम में शामिल हो चुके हैं, जबकि चीन में 1 अरब से ज्यादा इंटरनेट यूज़र हैं।


सरकार का तर्क: सुरक्षा और डिजिटल इकोनॉमी

सरकार का दावा है कि यह नई प्रणाली निजी डेटा की सुरक्षा, पहचान की आसानी और डिजिटल इकोनॉमी को मजबूत करने के लिए है। लेकिन आलोचकों का कहना है कि यह कदम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सीधा हमला है।

कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर शियाओ कियांग कहते हैं, “यह सिर्फ एक निगरानी टूल नहीं बल्कि डिजिटल तानाशाही का इन्फ्रास्ट्रक्चर है।” उनके अनुसार, सरकार किसी भी यूज़र को “एक क्लिक” में सभी सोशल प्लेटफॉर्म से गायब कर सकती है।


क्या है खतरा?

  1. रीयल-टाइम निगरानी: सरकार यूज़र की हर गतिविधि पर रीयल टाइम नजर रख सकेगी।

  2. डेटा ब्रीच का खतरा: 2022 में चीन की पुलिस का डेटा लीक हो चुका है, जिसमें 1 अरब से ज्यादा लोगों की जानकारी बाहर आई थी।

  3. स्वतंत्रता पर हमला: प्रोफेसर हाओचेन सन मानते हैं कि सरकार “सुविधा” का मुखौटा पहनाकर लोगों को मजबूर करेगी कि वे खुद ही इस सिस्टम का हिस्सा बन जाएं।


विरोध की आवाजें और उनका दब जाना

जब यह प्रस्ताव पहली बार लाया गया था, तब कुछ कानून के प्रोफेसरों और मानवाधिकार संगठनों ने इसका विरोध किया था। लेकिन जैसे ही मई में फाइनल नियम जारी किए गए, ऑनलाइन आलोचना लगभग समाप्त हो गई। यह चीन की सेंसरशिप नीति की ताकत और नियंत्रण को दर्शाता है।


निष्कर्ष:

चीन की यह नई नीति अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और निजता के अधिकार को सीमित करने की दिशा में एक बड़ा कदम मानी जा रही है। भले ही सरकार इसे सुरक्षा और सुगमता के नाम पर पेश कर रही हो, लेकिन निगरानी और सेंसरशिप का खतरा अब और ज्यादा वास्तविक हो गया है। आने वाले समय में यह “स्वैच्छिक” सिस्टम जबरन लागू किए जाने वाला उपकरण बन सकता है, जिससे एक अरब से अधिक इंटरनेट यूज़र्स की डिजिटल स्वतंत्रता गंभीर रूप से प्रभावित होगी।

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