अंटार्कटिका (Antarctica), पृथ्वी का सबसे सर्द इलाका, यहां का 99% हिस्सा बर्फ से ढंका है। यहां बर्फ की करीब दो मोटी परत जमी है। लेकिन अब ये बर्फ तेजी से पिघल रही है। नेशनल स्नो एंड आइस डेटा सेंटर (NSIDC) के मुताबिक, 13 फरवरी को अंटार्कटिका में 19.1 Lakh वर्ग किलोमीटर बार्फ पिघल गई।
वैज्ञानिकों का कहना है कि, ये लगातार दूसरा साल है जब एक दिन में 20 Lakh वर्ग किमी तक बर्फ पिघली हो। उनका मानना है कि, पिछले साल सबसे ज्यादा बर्फ 18 फरवरी से 3 मार्च के बीच पिघली थी और उनका अनुमान है कि इस साल पिछला रिकॉर्ड भी टूट सकता है। अंटार्कटिका में बर्फ पिघलने की ये घटना बड़ी अजीब है और इसके लिए सिर्फ क्लाइमेट चेंज को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।
1979 से सैटेलाइट के जरिए अंटार्कटिका की स्थिति पर नजर रखी जा रही है। अगर बीते 40 साल का डेटा देखें तो पिछले कुछ सालों में ही गर्मियों के मौसम में इतनी तेजी से बर्फ पिघलती नजर आ रही है। आर्कटिक में तो ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से बर्फ तेजी से पिघल रही है। वहां हर दशक 12-13 फीसदी बर्फ कम हो रही है, लेकिन अंटार्कटिका में ऐसा कभी नहीं हुआ।
कितना खतरनाक है बर्फ का पिघलना?
रिपोर्ट्स के मुताबिक, गर्म हवाओं की वजह से बर्फ तेजी से पिघल रही है। इस साल गर्म हवाओं का तापमान औसत से 1.5 डिग्री ज्यादा रहा है। अंटार्कटिका पृथ्वी का सबसे सर्द इलाका है और ये दुनिया का पांचवा सबसे बड़ा महाद्वीप भी है। जो की यूरोप से भी 40% बड़ा हैं। यहां पृथ्वी का 70% ताजा पानी है। हालांकि, ये पानी बर्फ के रूप में यह पर मौजूद है।
अंटार्कटिका 1.42 करोड़ वर्ग किलोमीटर के दायरे में फैला हुआ है। वैज्ञानिकों का मानना है कि, अगर अंटार्कटिका पिघल जाता है, तो इससे समंदर में पानी का स्तर 200 फीट तक बढ़ जाएगा, जो की एक भारी तबाही का संकेत हैं। नेशनल जियोग्राफिक की रिपोर्ट के मुताबिक, अंटार्कटिका 4 करोड़ सालों से बर्फ की चादरों से ढंका हुआ है। लगभग 18 हजार साल पहले पृथ्वी का एक तिहाई हिस्सा बर्फ से ढंका था, लेकिन अब 1/10 हिस्सा ही बर्फिला है।
दुनियाभर के वैज्ञानिक इस बात को लेकर डरे हुए हैं कि, धरती का तापमान तेजी से बढ़ रहा है, जो बर्फ को पिघला रहा है और इस कारण ग्लेशियर पिघल रहे हैं। ग्लेशियर तब पिघलते हैं, जब बर्फीली चादरें तेजी से पिघलने लगतीं हैं। बर्फ की इन चादरों के पिघलने से समुद्र का जल स्तर बढ़ने लगता है। इतना ही नहीं, इससे समुद्र का खारापन भी कम होता है।
वो इसलिए क्योंकि इन बर्फ की चादर में ताजा पानी होता है जो समंदर के खारेपन को कम करते हैं और इस कारण समुद्र में रहने वाले जीव पर बुरा असर पड़ सकता है। संयुक्त राष्ट्र (United Nations) का मानना है कि, अगली सदी तक समुद्री बर्फ में 25% तक की कमी आ सकती है, जिससे अंटार्कटिका में रहने वाले जीव-जंतुओं को खाने-पीने की समस्या से भी जूझना पड़ सकता है।