आज से 63 साल पहले यानी 1959 में अन्नपूर्णा मंदिर की स्थापना ब्रह्मलीन स्वामी प्रभानंद गिरी महाराज द्वारा की गई थी। मंदिर से मिली जानकारी के मुताबिक, महाराज का जन्म 14 जनवरी 1911 को आंध्र प्रदेश के नंदी कुटकुट स्थान पर हुआ था। 15 साल की उम्र में उन्होंने घर छोड़ वैराग्य धारण कर लिया और वे बेंगलुरु से मुंबई पहुंचे। वहां उल्हासनगर शिवालय में भजन-पूजन करते रहे और बाद में काशी जाकर दीक्षा ली।
देश के विभिन्न मार्गों में स्थित पुरातन शक्ति-पीठों के दर्शन आराधना के बाद तीर्थ-क्षेत्र ओंकारेश्वर में साधना करते रहे। फिर स्वामी प्रभानंद गिरी जी उज्जैन आ गए और तीन सालों तक यहीं रहे। इसके बाद वे गुजरात पहुंचे जहां प्रसिद्ध देव स्थल गिरनार पर्वत पर कठोर तपस्या की, वहीं आपको भगवती अम्बिका का दर्शन हुआ और वहां से आप इंदौर आ गए।
सन 1955 में इंदौर आने के बाद वे रणजीत हनुमान मंदिर क्षेत्र में निवास करने लगे। अन्नपूर्णा मंदिर में वट वृक्ष के नीचे बैठकर मां अन्नपूर्णा की भक्ति-साधना में लग गए। यहीं आपने अन्नपूर्णा मंदिर बनाने का संकल्प लिया और भक्तों के सहयोग से 22 फरवरी 1959 को समारोह पूर्वक माँ अन्नपूर्णा का श्री विग्रह स्थापित कर प्राण-प्रतिष्ठा की। जब से यह मंदिर शहर के लोगो के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ हैं।
अन्नपूर्णा मंदिर में विराजित तीनों देवियों का दिनभर में तीन बार श्रृंगार किया जाता है। सबसे पहला श्रृंगार सुबह 5 बजे ब्रह्म मुहूर्त में किया जाता है। जिसके बाद 7 बजे आरती होती है। फिर 11 बजे श्रृंगार होता है और 12 बजे देवियों को भोग अर्पित किया जाता है। फिर शाम को 5 बजे श्रृंगार किया जाता है और 7 बजे देवी की भक्ति भाव से आरती की जाती है।
यहां देवियों का श्रृंगार कराने के लिए आपको नंबर लगाना पड़ता है। पिछले करीब 40 साल से ज्यादा वक्त से यहां तीन बार देवियों का श्रृंगार हो रहा है। यहां देवियों का श्रृंगार कराने के लिए आपको मंदिर के पुजारी से या ऑफिस में संपर्क करना होता है। उनके द्वारा फिर आपको बताया जाता है। जिस दिन श्रृंगार करना होता है उसके एक दिन पहले आपको श्रृंगार की सामग्री और साड़ी देना होती है। फिलहाल में 225 भक्तों की वेटिंग लगी हुई है।