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इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने कर दी अतीक के लिए अति, मारी गई मति, मीडिया खुद का प्रसारण देख लें तो शर्म आ जाएगी

Atiq Ahmed
Atiq Ahmed

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इतिहास में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के नाम 26-27 मार्च काला दिन के नाम पर लिखा जाएगा। यह बात ‘दैनिक राजीव टाइम्स’ इसलिए लिख रहा है, क्योंकि, आपने 24 घंटे से अधिक समय तक अपने कैमरे का फोकस ऐसे गैंगस्टर अतीक अहमद की तरफ रखा, जिसके खिलाफ 100 से भी ज्यादा प्रकरण और उसके परिवार वालों के खिलाफ 160 प्रकरण दर्ज हैं।
मीडिया ने पुलिस और जेल प्रशासन के काम में भी दखल दिया। अतीक अहमद न तो कोई संत या महापुरुष है, और न देश के लिए इतना महत्वपूर्ण है कि, लगभग 1300 किलोमीटर तक माइक और कैमरे थामे उसके आगे-पीछे गाड़ियों में दौड़ते रहें, यह जानने की भी कोशिश नहीं की कि दर्शक इस समाचार को देखना भी चाहते हैं या नहीं।
या खेल कुछ और ही था…! हमें तो शक है कि आपकी यह पूरी कवायद गैंगस्टर के फरार परिजनों को अतीक का आंखों देखा हाल दिखाने के लिए तो नहीं थी, क्योंकि इस गैंगस्टरके परिवार वालों को डर था कि, ‘कहीं पुलिस उसका एनकाउंटर न कर दे। वहीं एक-दो नहीं, बल्कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया वालों की 40-50 गाड़ियां इस गैंगस्टर की गाड़ी के आगे-पीछे चल रही थीं। इस भागा-दौड़ी से बदहवास एक गाय शिवपुरी के पास अतीक की गाड़ी से टकराकर मर गई…
मीडिया की आपाधापी के कारण सरकारी वाहनों को भी जेल तक पहुंचने में काफी संघर्ष करना पड़ा। एक वीडियो भी वायरल हो रहा है। इसमें जिस वाहन में अतीक अहमद बैठा था, उसका ड्राइवर कह रहा है कि, “मीडियावालों की वजह से ही एक्सीडेंट हो जाएगा” क्योंकि मीडिया की एक गाड़ी इस वाहन को ओवरटेक कर रही थी। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया वालों को पल-पलकी खबर देने की इतनी खुजली कि, रास्ते भर में इन्होंने अपने तमाम प्रतिनिधियों को कैमरा लेकर तैनात कर रखा था, पल-पलकी खबरें., जैसा कोई महान काम इस गैंगस्टर ने कर दिया हो…।
साबरमती जेल के दरवाजे से लेकरप्रयागराज की जेल में अतीक के घुसने तक इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने अपना फर्ज इतनी जिम्मेदारी से निभाया कि जनता कह रही है ‘बिक गया इलेक्ट्रॉनिक मीडिया’…., इतिहास में शायद ही ऐसा कोई प्रकरण रहा होगा, जिसमें 25 घंटे तक एक ही प्रकरण पर प्रसारण किया गया हो? वर्षों से लोगों का जो भरोसा हासिल किया, वह 27 मार्च को खुद ही खत्मकर दिया।
खैर! जनता भी जानती है कि, आप गलत तरीके से खबरों को बता रहे हो। साबरमती से लेकर प्रयागराज तक शाम 5.30 तक जो दुड़की आपने लगाई है, वह किसी काम की नहीं थी…, न आपके चैनल के लिए और न ही जनता के लिए। मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है…,लेकिन आपने जो किया, यह आगे भी दोहराया गया तो चौथा स्तंभ ढहने में ज्यादा समय नहीं लगेगा…।
शायद यही कारण है कि, जितने भी बड़े आयोजन देश भर में होते हैं, उनसे मीडिया को दूर ही रखा जाने लगा है। प्रतिष्ठित कार्यक्रमों में घुसने तक नहीं दिया जाता और इसका खामियाजा उन मीडिया कर्मियों को भुगतना पड़ता है, जो ईमानदारी से संबंधित कार्यक्रम की आंखों देखी जानकारी अपने दर्शकों या पाठकों तक पहुंचाना चाहते हैं। बंद कमरों में क्या हो रहा है, ये आपको भी पता नहीं होता, लेकिन बाहर से आपकी लफ्फाजी चलती रहती है, उस पर दुनिया हंसती है।
इस मामले में विदेशी मीडिया को ही अपना आदर्श मानकर कुछ सबक सीख लो। क्या कभी विदेशी मीडिया अतीक जैसे गैंगस्टरों के आगे-पीछे इस तरह दौड़ता है, जैसा आपने कर दिखाया? अपनी TRP के लिए कभी बाबाओं के पीछे लग जाते हो तो कभी गैंगस्टरों के…। कुछ नहीं मिला तो किसी नेता को घेर लिया। मीडिया की इन्हीं हरकतों के कारण फिल्मों में कोई पुलिसवाला या नेता इलेक्ट्रॉनिक मीडिया वाले को चनकट टिकारहा है…, या किसी कैमरामैन को धकिया रहा है…। कभी सुशांतसिंह राजपूत.. तो कभी आर्यन खान जैसे मुद्दों का मीडिया ट्रायल करने की वजहसे लोग पत्रकारिता परसवाल दागते हैं…।इसे पत्रकारिता तो नहीं कह सकते…।

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