हिन्दू धर्मानुसार एक साल में कुल 24 एकादशियां होती हैं, लेकिन अधिक मास में एकादशियों की संख्या बढ़ कर 26 हो जाती हैं। अधिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पद्मिनी एकादशी (शुक्ल पक्ष) और परमा एकादशी (कृष्ण पक्ष) के नाम से जाना जाता हैं।
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पद्मिनी एकादशी की व्रत कथा
भगवन श्रीहरी विष्णु ने नारद ऋषि से कहा – हे मुनिवर! त्रेतायुग में कृतवीर्य नामक राजा महिष्मती पुरी में राज्य करता था। उस राजा की 1,000 परम प्रिय स्त्रियां थीं, परंतु राजा को किसी भी रानी से पुत्र रत्न की प्राप्ति नहीं थी, जो कि उनके राज्यभार को संभाल सके। देवता, पितृ, सिद्ध तथा अनेक चिकित्सकों आदि से राजा ने पुत्र प्राप्ति के लिए काफी प्रयत्न किए, लेकिन सब असफल रहे।
तब राजा ने तपस्या करने का निश्चय किया तो महाराज के साथ उनकी परम प्रिय रानी, जो इक्ष्वाकु वंश में उत्पन्न हुए राजा हरिश्चंद्र की कन्या पद्मिनी थीं, वो भी राजा के साथ वन में जाने को तैयार हो गई। दोनों अपने मंत्री को राज्यभार सौंपकर राजसी वेष त्यागकर गंधमादन पर्वत पर तपस्या करने के लिए चले गए। राजा और उनकी रानी ने उस पर्वत पर 10 हजार वर्ष तक तप किया, परंतु फिर भी उन्हें पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई।
तब पतिव्रता रानी कमलनयनी पद्मिनी से माता अनुसुइया ने कहा कि, “12 मास से अधिक महत्वपूर्ण मलमास होता है, जो 32 मास पश्चात आता है। उसमें द्वादशीयुक्त पद्मिनी शुक्ल पक्ष की एकादशी का जागरण समेत व्रत करने से तुम्हारी सारी मनोकामना पूर्ण होगी। इस व्रत के करने से भगवान तुम पर प्रसन्न होकर तुम्हें शीघ्र ही पुत्र देंगे।”
रानी पद्मिनी ने पुत्र प्राप्ति की इच्छा से और माता अनुसुइया के आदेश से एकादशी का व्रत किया। वह एकादशी को निराहार रहकर रात्रि जागरण करती रही। तब उनके द्वारा इस व्रत से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया और इसी के प्रभाव से पद्मिनी के घर कार्तवीर्य रूप में पुत्र उत्पन्न हुए। जो तीनों लोकों अधिक बलवान हुए और तीनों लोकों में भगवान के सिवा उनको जीतने का सामर्थ्य किसी में नहीं था।
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