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जानिए कौन थे सियाराम बाबा

Sant Siyaram Baba: संत सियाराम बाबा का आज 110 वर्ष की आयु में प्रभुमिलन हो गया। बाबा ने बुधवार मोक्षदा एकादशी पर सुबह 6:10 बजे अंतिम सांस ली। देश भर में उनके अनुयायियों में शोक की लहर है। बताया जा रहा है कि, बाबा पिछले 10 दिन से निमोनिया से पीड़ित थे।

Sant Siyaram Baba
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बाबा के अनुयायियों ने बताया कि, बाबा का असली नाम कोई नहीं जानता। वे 1933 से नर्मदा किनारे रहकर तपस्या कर रहे थे। 10 साल तक खड़े रहकर मौन तपस्या की। वे करीब 70 साल से रामचरित मानस का पाठ भी कर रहे थे। अपने तप और त्याग से लोगों के हृदय में जगह बनाई। पहली बार उनके मुंह से सियाराम का उच्चारण हुआ था। तभी से लोग उन्हें संत सियाराम बाबा के नाम से पुकारते हैं।

निमाड़ क्षेत्र के प्रसिद्ध संत सियाराम बाबा के निधन की खबर जैसे ही सोशल मीडिया के माध्यम से उनके भक्तों तक पहुंची तो उन्हें पूर्व की तरह इस बार भी यकीन न हुआ और वे मोबाइल से सम्पर्क कर या मीडिया के माध्यम से भी यह पता लगाने में जुट गए कि क्या वाकई संत सियाराम बाबा ने देह त्याग दी या यह इस बार भी महज एक अफवाह है। उनके इस नश्वर शरीर को त्यागने की खबर से उनके अनुयायियों में शोक की लहर दौड़ पड़ी।

Sant Siyaram Baba
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एक जानकारी के मुताबिक, संत सियाराम बाबा का जन्म महाराष्ट्र में मुंबई के आसपास किसी ग्रामीण क्षेत्र में होना बताया जाता है। यही कारण है कि वे मराठी भाषा अच्छी तरह से जानते-समझते तो थे ही, वहीं संस्कृत भाषा में भी वे पारंगत रहे। बताया जाता है कि, वे जब 1955 में अन्य संतों के साथ नर्मदा परिक्रमा के दौरान भट्यान गांव पहुंचे तो उन्हें यह माँ नर्मदा किनारे का गांव इतना भाया कि, वे वहीं टुकिया बनाकर रहने लगे। बाबा करीब 69 सालों से इसी गांव में रह रहे थे और गांव छोड़कर कहीं नहीं गए। जब बाबा यहां पहुंचे थे तब उनकी उम्र करीब 25 से 30 साल रही होगी।

हालांकि, उनकी उम्र को लेकर भी कई मतभेद रहे हैं। कोई उन्हें 100 वर्ष का बताता है, तो कोई 108 या कोई कहता है कि, सियाराम बाबा की उम्र करीब 115 साल थी। संत के लिए रोजाना 5 अलग-अलग घरों का खाना आता था, वे सभी का भोजन एक पात्र में मिलाते औऱ उसे चूरकर खाते थे। सुबह उठकर वे भगवान राम का नाम जपते और नर्मदा नदी में जाकर स्नान करना उनकी दिनचर्चा में शामिल था।

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इसके बाद वे दिनभर आश्रम में रामचरित मानस पढ़ने और शाम को भक्तों के साथ भजन भी गाते थे। यह भी बता दें कि, बाबा ने वर्षों तक मौन धारण किया और एक पैर पर खड़े रहकर तपस्या भी करते रहे। बीते 20 सालों के अंदर उनके भक्तों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी होती गई और उनके अधिकांश अनुयायी निमाड़ व आदिवासी अंचल से हैं। उनके निधन पर मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव सहित राजनीति, सामाजिक व अन्य संगठनों ने श्रद्धांजलि अर्पित की।

सियाराम बाबा, जिनकी साधना और तपस्या की गाथाएं आज भी लोगों के दिलों में बसी हुई हैं, निमाड़ क्षेत्र के एक प्रसिद्ध संत थे। महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव से यात्रा शुरू करने वाले बाबा का जीवन नर्मदा नदी के किनारे बसे भट्यान गांव में पूरी तरह से बदल गया। यहां आकर उन्होंने अपनी साधना में पूरी तरह से समर्पण किया और एक तपस्वी संत के रूप में अपनी पहचान बनाई। बाबा का जीवन सिर्फ भक्ति और साधना से जुड़ा था। वे न केवल एक महान योगी थे, बल्कि उन्होंने अपनी तपस्या और भक्ति से अनगिनत लोगों को अपने मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी। उनके अनुयायी आज भी उनके उपदेशों और साधना को अपनी जीवनशैली में उतारते हैं। सियाराम बाबा का निधन उनके भक्तों के लिए अपूरणीय क्षति है, लेकिन उनका आध्यात्मिक योगदान हमेशा जीवित रहेगा।

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