मिस्र (Egypt) में लाल सागर के पास स्थित बेर्निस के प्राचीन बंदरगाह में महात्मा बुद्ध की एक प्रतिमा की खोज की गई है। बुद्ध की यह प्रतिमा दूसरी शताब्दी की बताई जा रही है और इस महत्वपूर्ण खोज से संकेत मिलता है कि, रोमन साम्राज्य और भारत के बीच व्यापारिक संबंध थे।
71 सेंटीमीटर लंबी प्रतिमा के चारों ओर आभामंडल है और उसके बगल में एक कमल का फूल बना दिख रहा है। मिस्र की पुरावशेष मंत्रालय के एक बयान में कहा कि, “एक पोलिश-अमेरिकी मिशन ने प्रतिमा की खोज की है। बेर्निस में प्राचीन मंदिर में खुदाई के दौरान रोमन काल की प्रतिमा की खोज की गई है।”
समाचार एजेंसी से बात करते हुए मिस्र की सर्वोच्च पुरावशेष परिषद के प्रमुख मुस्तफा अल-वजीरी ने कहा कि, ‘इस खोज से रोमन साम्राज्य के दौरान मिस्र और भारत के बीच व्यापार संबंधों की मौजूदगी के महत्वपूर्ण संकेत मिले हैं।’ खोजकर्ताओं ने बुद्ध की जो प्रतिमा खोजी है, उसका दाहिना हिस्सा और दाहिना पैर गायब है।
मिस्र के बड़े बंदरगाहों में शामिल था बेर्निस –
वजीरी ने कहा कि, बेर्निस रोमन युग के मिस्र में सबसे बड़े बंदरगाहों में से एक था। इसी बंदरगाह से भारत और दुनिया के बाकी देशों से मसाले, कीमती पत्थर, कपड़े और हाथी दांत मिस्र आते थे। बंदरगाह पर सामान आने के बाद उसे ऊंटों पर रेगिस्तान के पार नील नदीं तक पहुंचाया जाता था। आयातित सामान को मिस्र के दूसरे सबसे बड़े शहर अलेक्जेंड्रिया और वहां से शेष रोमन साम्राज्य को भेजा जाता था।
मिशन की पोलिश टीम के निदेशक मारियस ग्विआज्दा ने कहा कि, बुद्ध की मूर्ति शायद इस्तांबुल के दक्षिण के एक क्षेत्र से निकाले गए पत्थर से बनाई गई थी या हो सकता है कि, स्थानीय रूप से बेर्निस में ही बनाई गई हो और भारत के अमीर व्यापारियों ने इसे मिस्र के मंदिर को तोहफे के रूप में दिया हो।
पुरातत्वविदों ने इस बात का भी खुलासा किया कि, मंदिर की खुदाई के दौरान उन्हें रोमन सम्राट मार्कस जूलियस फिलिपस (244 से 249) के दौर का एक शिलालेख भी मिला है जो संस्कृत लिपि में लिखा गया है।
अमेरिकी टीम के निदेशक स्टीवन साइडबॉथम ने कहा कि, ‘ऐसा लगता है कि संस्कृत में लिखा यह शिलालेख उस दौर का बना नहीं है जिस दौर की बुद्ध की मूर्ति है। शायद यह बहुत पुराना है क्योंकि मंदिर में खुदाई के दौरान हमें और शिलालेख भी मिले हैं और ये शिलालेख पहली शताब्दी के हैं।’