भारतीय सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने सोमवार को तलाक को लेकर अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि, अगर पति-पत्नी के रिश्ते टूट चुके हों और सुलह की कोई गुंजाइश न बची हो, तो वह भारतीय संविधान के आर्टिकल 142 के तहत तलाक को मंजूरी दे सकता है। इसके लिए अब दंपति को 6 महीने का इंतजार अनिवार्य नहीं होगा।
कोर्ट ने कहा कि, उसने वे फैक्टर्स तय किए हैं, जिनके आधार पर शादी को सुलह की संभावना से परे माना जा सकेगा। इसके साथ ही कोर्ट यह भी सुनिश्चित करेगा कि, पति-पत्नी के बीच बराबरी कैसे रहेगी और इसमें मैंटेनेंस, एलिमोनी और बच्चों की कस्टडी भी शामिल है। यह फैसला जस्टिस एसके कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस एएस ओका और जस्टिस जेके माहेश्वरी की संविधान पीठ ने सुनाया हैं।(Breaking News)
क्यों भेजा गया था संविधान पीठ को ये मामला –
इस मुद्दे को एक संविधान पीठ को यह विचार करने के लिए भेजा गया था कि, ‘क्या हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13B के तहत आपसी सहमति से तलाक की प्रतीक्षा अवधि (वेटिंग पीरियड) को माफ किया जा सकता है।” हालांकि खंडपीठ ने यह भी विचार करने का फैसला किया कि, “क्या शादी के सुलह की गुंजाइश ही ना बची हो तो विवाह को खत्म कैसे किया जा सकता है।”(Breaking News)
संविधान पीठ के पास कब भेजा गया था यह मामला –
डिवीजन बेंच ने 29 जून 2016 में पांच जजों की संविधान पीठ को यह मामला रेफर किया था। पांच याचिकाओं पर लंबी सुनवाई के बाद बेंच ने 29 सितंबर, 2022 को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था और कहा था कि, सामाजिक परिवर्तन में ‘थोड़ा समय’ लगता है और कभी-कभी कानून लाना आसान होता है, लेकिन समाज को इसके साथ बदलने के लिए राजी करना बहुत मुश्किल होता है। लेकिन अब यह फैसला सुनिश्चित किया जा चूका हैं।