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तो ये हैं मगरमच्छों का 23 करोड़ साल पुराना पूर्वज, 2 फीट लंबा और 5 से 7 किलो वजनी, वैज्ञानिकों को मिले नए प्रजाति के अवशेष

Archosaur
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आज से लगभग 23 करोड़ साल पहले ट्राइएसिक काल (Triassic period) के अंत में, चोंच जैसे मुंह वाला एक रेप्टाइल अमेरिका में पाया जाता था। यह इलाका अब व्योमिंग (Wyoming) है। जीवाश्म वैज्ञानिको ने एक नए शाकाहारी रेप्टाइल के अवशेषों का पता लगाया है, जो शुरुआती आर्कोसोर (Archosaur) है और इसलिए ये आधुनिक पक्षियों और मगरमच्छों का दूर का रिश्तेदार भी है।
Archosaur
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यह रिनकोसॉर (Rhynchosaur) प्रजाति का है, जो पेड़ पौधे खाने वाले जीव होते थे और इनकी तोते जैसी चोंच हुआ करती थी। हाल ही में डायवर्सिटी जर्नल में प्रकाशित एक शोध में, शोधकर्ताओं ने इस नई पहचानी गई प्रजाति के बारे में बताते हुए कहा कि, “उन्होंने इस प्रजाति को बीसीवो कोउव्यूज़ (Beesiiwo cooowuse) कहकर सम्बोधित किया है।”
विस्कॉन्सिन-मैडिसन यूनिवर्सिटी के कशेरुक जीवाश्म विज्ञानी और शोध के सह लेखक डेविड लवलेस (David Lovelace) का कहना है कि, “बीसीवो बड़ा नहीं था। उनका अनुमान है कि, एक वयस्क का वजन शायद 5 से 7 किलो के बीच होता होगा और वह लगभग 2 फीट लंबा होगा।”
Archosaur
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शोधकर्ता केवल यह अनुमान लगा सकते हैं कि, ये जानवर किन खास पौधों को खाता होगा। इस बात पर लवलेस का कहना है कि, ‘यह जानवर निश्चित रूप से कोनिफ़र, फ़र्न और हॉर्सटेल के पौधे खाता होगा और उनकी पत्तियों को छीलने या कुतरने के लिए यह अपने चोंच वाले मुंह का बहुत अच्छी तरह से इस्तेमाल करता होगा।”
हालांकि इसके कोई सबूत नहीं मिले हैं। क्योंकि जीवाश्म अमेरिकी भूमि में मिले, इसलिए शोधकर्ताओं ने उत्तरी अरापाहो जनजातीय ऐतिहासिक संरक्षण कार्यालय के नेताओं के साथ पार्टनरशिप की, ताकि नई प्रजाति बीसीवो कूउउसे नाम दिया जा सके। अरापाहो भाषा में इसका मतलब होता है सेंट्रल व्योमिंग के ‘अल्कोवा इलाके की बड़ी छिपकली।’
Archosaur
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यह नामकरण अरापाहो लोगों, विंड रिवर इंडियन रिजर्वेशन पर स्थित फोर्ट वाशकी स्कूल (FWS) के छात्रों और यूनिवर्सिटी के बीच पार्टनरशिप का एक हिस्सा है। पश्चिम अमेरिका में खोजे गए ढेरों जीवाश्मों के बावजूद, ऐसा पहली बार है जब अमेरिका में ही पाए गए किसी स्पेसिमेन का नाम अरापाहो भाषा में रखा गया हो। लवलेस का कहना है कि, “यह फील्डवर्क करने के लिए बहुत ही अच्छी जगह है, क्योंकि इस भूवैज्ञानिक संरचना का पिछली एक सदी में कभी अध्ययन नहीं किया गया है।”
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