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जानिए क्या है चंद्रयान-3 का मकसद…? चाँद का दक्षिणी ध्रुव ही क्यों हैं इसका लक्ष्य

Chandrayaan-3
Chandrayaan-3

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भारतीय स्पेस एजेंसी ISRO आज Chandrayaan-3 को लॉन्च करने जा रही है। चंद्रयान-3 आज दोपहर 2:35 मिनट पर श्रीहरिकोटा के सतीश धवन सेंटर से लॉन्च होगा, जो भारत का तीसरा मून मिशन है। चंद्रयान-3 को चंद्रयान-2 का फॉलोअप मिशन भी बताया जा रहा है। मिशन का मकसद हैं चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग करना।
Chandrayaan-3
Chandrayaan-3
आपको बता दें कि, Chandrayaan-3 में ऑर्बिटर नहीं होगा, सिर्फ लैंडर और रोवर ही रहेंगे। ISRO ने इस बार भी लैंडर का नाम ‘विक्रम’ और रोवर का नाम ‘प्रज्ञान’ रखा है। चंद्रयान-2 में भी लैंडर और रोवर के यही नाम थे। चंद्रयान-3 में चंद्रयान-2 की तरह ऑर्बिटर तो नहीं होगा, लेकिन इसमें प्रोपल्शन मॉड्यूल होगा। इसी प्रोपल्शन मॉड्यूल के साथ लैंडर और रोवर जुड़े होंगे।
जब मॉड्यूल चांद की सतह से 100 किलोमीटर दूर होगा, तब लैंडर इससे अलग हो जाएगा। लेकिन ये सब होने से पहले प्रोपल्शन मॉड्यूल चांद के कई चक्कर काटेगा। वहीँ, चांद पर लैंडर के उतरने के बाद इसी से रोवर बाहर आएगा। ISRO ने इस मिशन की लाइफ 1 लूनर डे बताई हैं, आपको बता दें कि – चांद पर 1 दिन पृथ्वी के 14 दिन के बराबर होता है।
अब जानिए क्या है इसका मकसद ?
Chandrayaan-3 का भी वही मकसद है, जो Chandrayaan-2 का था। यानी, चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग करना, ISRO के इस तीसरे मून मिशन की लागत करीब 615 करोड़ रुपये आयी हैं। इसरो के मुताबिक, चंद्रयान-3 के तीन प्रमुख मकसद हैं :-
पहला – विक्रम लैंडर का चांद की सतह पर सुरक्षित और सॉफ्ट लैंडिंग करना।
दूसरा – प्रज्ञान रोवर को चांद की सतह पर चलाकर दिखाना।
तीसरा – वैज्ञानिक परीक्षण करना।
अगर चंद्रयान-3 का लैंडर चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंड कर जाता है तो ऐसा करने वाला भारत दुनिया का चौथा देश होगा। इससे पहले अमेरिका, रूस और चीन चांद की सतह पर लैंडर उतार चुके हैं। हालांकि, दक्षिणी ध्रुव पर लैंडर उतारने वाला भारत दुनिया में पहला देश बन जायेगा। आजतक किसी भी देश ने दक्षिणी ध्रुव पर अपना लैंडर नहीं उतारा है। भारत से पहले चीन ने चांग’ई-4 की मदद से ऐसा करने की कोशिश की थी।
Chandrayaan-3
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चाँद का दक्षिणी ध्रुव ही क्यों इसका लक्ष्य ?
जिस तरह से पृथ्वी का दक्षिणी ध्रुव सबसे ठंडा है, उसी तरह से चांद का भी है। चांद के दक्षिणी ध्रुव पर अगर कोई अंतरिक्ष यात्री खड़ा होगा, तो उसे सूर्य क्षितिज की रेखा पर नजर आएगा और वो चांद की सतह से लगता हुआ और भी चमकता नजर आएगा। इस इलाके का ज्यादातर हिस्सा छाया में ही रहता है। क्योंकि सूर्य की किरणें दक्षिणी ध्रुव पर तिरछी पड़ती हैं। इस कारण यहां तापमान कम होता है, एक अनुमान के मुताबिक, चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर तापमान -100 डिग्री से भी नीचे चला जाता है।
ISRO द्वारा ऐसा अंदाजा लगाया जा रह है कि, “हमेशा छाया में रहने और तापमान कम होने की वजह से यहां पानी और खनिज हो सकते हैं. इसकी पुष्टि पहले हुए मून मिशन में भी हो चुकी है।” अगर चंद्रयान-3 के जरिए दक्षिणी ध्रुव पर पानी और खनिज की मौजूदगी का पता चलता है तो ये अंतरिक्ष विज्ञान के लिए एक बड़ी कामयाबी साबित होगी।
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