Dr. Manmohan Singh: भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का गुरुवार (26 दिसंबर 2024) को 91 वर्ष की आयु में निधन हो गया। सांस लेने में तकलीफ के बाद उन्हें दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) में भर्ती कराया गया था, जहां रात 8 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली।
अंतिम संस्कार की तैयारियां
उनके निधन से देशभर में शोक की लहर है। गृह मंत्रालय ने सात दिन के राष्ट्रीय शोक की घोषणा की है। इस दौरान राष्ट्रीय ध्वज आधा झुका रहेगा और कोई भी आधिकारिक समारोह आयोजित नहीं किए जाएंगे। डॉ. मनमोहन सिंह का अंतिम संस्कार शनिवार (28 दिसंबर) को सुबह 10 बजे के बाद राजघाट पर किया जाएगा। उनका पार्थिव शरीर कांग्रेस मुख्यालय में अंतिम दर्शन के लिए रखा गया हैं। जहां बड़े नेताओं और आम जनता को उन्हें श्रद्धांजलि देने का अवसर मिलेगा।
लैंप की रोशनी में की पढ़ाई
दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक राष्ट्र के 10 वर्षों (2004-2014 तक) तक प्रधानमंत्री रहे डॉ. मनमोहन सिंह का एम्स में निधन हो गया है। डॉ. सिंह को दुनिया भर में उनकी आर्थिक विद्वता और काम के लिए सम्मान दिया जाता था।
कभी अपने गांव में मिट्टी के तेल से जलने वाले लैंप की रोशनी में पढ़ाई करने वाले सिंह आगे चलकर एक प्रतिष्ठित शिक्षाविद बने। 1990 के दशक की शुरुआत में सिंह की भारत को उदारीकरण की राह पर लाने के लिए सराहना की गई, लेकिन प्रधानमंत्री के रूप में अपने 10 साल के कार्यकाल के दौरान भ्रष्टाचार के आरोपों पर आंखें मूंद लेने के लिए भी उनकी आलोचना की गई।
अविभाजित भारत (अब पाकिस्तान) के पंजाब प्रांत के गाह गांव में 26 सितंबर, 1932 को गुरमुख सिंह और अमृत कौर के घर जन्मे सिंह ने 1948 में पंजाब में अपनी मैट्रिक की पढ़ाई पूरी की। उनका अकादमिक करियर उन्हें पंजाब से ब्रिटेन के कैंब्रिज तक ले गया जहां, उन्होंने 1957 में अर्थशास्त्र में प्रथम श्रेणी ऑनर्स की डिग्री हासिल की सिंह ने इसके बाद 1962 में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के नाफील्ड कॉलेज से अर्थशास्त्र में ‘D.Phil’ की उपाधि प्राप्त की।
1982 से शुरू हुआ राजनितिक करियर
मनमोहन सिंह का राजनीतिक करियर 1991 में राज्यसभा के सदस्य के रूप में शुरू हुआ, जहां वह 1998 से 2004 के बीच विपक्ष के नेता रहे। उन्होंने इस साल (3 अप्रैल) को राज्यसभा में अपनी 33 साल लंबी संसदीय पारी समाप्त की। अपने करियर की शुरुआत पंजाब विश्वविद्यालय और प्रतिष्ठित ‘दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स’ डिपार्टमेंट में लेक्चरर से की।
डॉ. सिंह ने ‘UNCTAD’ सचिवालय में भी कुछ समय तक काम किया और बाद में 1987 और 1990 के बीच जिनेवा में ‘साउथ कमीशन’ के महासचिव बने। वर्ष 1971 में सिंह भारत सरकार के वाणिज्य मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार के रूप में शामिल हुए। इसके तुरंत बाद 1972 में वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार के रूप में उनकी नियुक्ति हुई। उन्होंने जिन कई सरकारी पदों पर काम किया उनमें वित्त मंत्रालय में सचिव, योजना आयोग के उपाध्यक्ष, भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर, प्रधानमंत्री के सलाहकार और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष के पद शाामिल हैं।
1991 में आया करियर का महत्वपूर्ण मोड़
डॉ. मनमोहन सिंह के करियर का महत्वपूर्ण मोड़ 1991 में नरसिंह राव सरकार में भारत के वित्त मंत्री के रूप में सिंह की नियुक्ति था। आर्थिक सुधारों की एक व्यापक नीति शुरू करने में उनकी भूमिका को अब दुनिया भर में मान्यता प्राप्त है। मनमोहन सिंह ने जुलाई, 1991 के बजट में अपने प्रसिद्ध भाषण में कहा था, ‘पृथ्वी पर कोई भी ताकत उस विचार को नहीं रोक सकती जिसका समय आ गया है। “मैं इस प्रतिष्ठित सदन को सुझाव देता हूं कि, भारत का दुनिया में एक प्रमुख आर्थिक शक्ति के रूप में उदय होना चाहिए, यह एक ऐसा ही एक विचार है।”
पीएम पद से देने वाले थे इस्तीफा
मनमोहन सिंह के करीबी सूत्रों की माने तो राहुल गांधी द्वारा दोषी राजनेताओं को चुनाव लड़ने की अनुमति देने के लिए अध्यादेश लाने के केंद्रीय मंत्रिमंडल के फैसले की प्रति फाड़ने के बाद सिंह ने लगभग इस्तीफा देने का मन बना लिया था। उस समय वह विदेश में थे, भाजपा द्वारा सिंह पर अक्सर ऐसी सरकार चलाने का आरोप लगाया जाता था जो भ्रष्टाचार से घिरी हुई थी। पार्टी ने उन्हें “मौनमोहन सिंह” की संज्ञा दी थी और आरोप लगाया था कि, उन्होंने अपने मंत्रिमंडल में भ्रष्ट नेताओं के खिलाफ नहीं बोला।
भारत रत्न की मांग
आम आदमी पार्टी ने डॉ. मनमोहन सिंह को भारत रत्न देने की मांग का समर्थन किया। पार्टी ने कहा कि उनका योगदान देश के आर्थिक विकास और नीति निर्माण में ऐतिहासिक रहा है। डॉ. सिंह के परिवार में उनकी पत्नी गुरशरण कौर और उनकी तीन बेटियां हैं।
वे देश के इकलौते प्रधानमंत्री हैं, जिनके हस्ताक्षर भारतीय नोटों पर पाए जाते हैं। 2005 में भी जब वे प्रधानमंत्री के पद पर थे तब भारत सरकार ने 10 रुपये का नया नोट जारी किया था। उस पर मनमोहन सिंह के हस्ताक्षर थे। हालांकि उस दौरान नोटों पर भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर के हस्ताक्षर होते थे।
MORE NEWS>>>पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का निधन